Sunday, March 17, 2024

" धुन "

 ज़िन्दगी " मदारी " है , हम " जमूरे " , 

वक्त "डमरू" है , परिस्थितियाँ " धुन " है, 

बजना तय है - "नाचना" तो पड़ेगा ही , 

ज़िंदा रहने के लिये "थिरकना" जरुरी है।  


"थिरकन" तय करेगी रास्ता हमारा , 

अक्सर "रास्ते" कहाँ सरल होते है , 

"सरल" अगर सब कुछ होता यहाँ , 

"गुलाब " के साथ काँटे नहीं उगते।  


"काँटे" संघर्ष है , जीवटता है , 

"गुलाब " कामयाबी की दास्तां , 

उगने, पनपने और खिलने का सफ़र , 

धुन पर नाचते रहने का है परिणाम।  

Thursday, February 15, 2024

बात पते की

 

दादी एक बात कहती थी ,

उस समय समझ नहीं आती थी ,

वो कहती थी - अक्ल और ,

उम्र की भेंट अक्सर नहीं होती ,

जिनकी होती है -वो पार हो जाते है ,

जिनकी नहीं होती वो बस पछताते है ,

बात सीधी और सरल सी थी ,

अपने में पूरा सार समेटे थी ,

जीवन का सारा खेल ही ,

अक्ल और उम्र पर टिका है ,

सही उम्र पर अक्ल आ जाए ,

तो पूरा जीवन सफल हो जाता है ,

वर्ना फिर जीवन की मथनी में ,

वो पिसता चला जाता है,

दादी एक बात कहती थी ,

उस समय समझ कहाँ आती थी ,

वो कहती थी -अभी समझ नहीं आयेगा ,

जब आयेगा -  बहुत देर हो चुकी होगी ,

और ये लाख टके की बात थी,

अब सोचों तो कितना सच कहती थी। 

Wednesday, January 31, 2024

दुविधा

 

दुविधा बड़ी है ,

राहें ज़िन्दगी की ,

क्या छोड़ू,क्या समेटू ,

समेटू तो कुछ जरूर छूटे ,

छोड़ू कुछ तो बुरा लगे ,

समेटने - छोड़ने के क्रम में ,

दिमाग हमेशा उलझन में रहे ,

उधेड़बुन कदम दर कदम ,

न कुछ छूटे,न कुछ समेटे ,

गुजर रहा है कारवाँ ,

हम गुदड़ी कंधे में बोके,

चल रहे है हक्के -बक्के,

हर मंजर पर आँखे फाड़े ,

सुस्ताते कभी, कभी तेज भागे ,

किसी को टंगड़ी दे ,

आगे बढ़ते ,

पीछे से कोई टाँग खींचे ,

क्या चाहिए ,

कितना चाहिये ,

क्यों चाहिये ,

परवाह कहाँ है ,

बोझ काँधे का खुद बढ़ाते ,

हाँफते , लड़खड़ाते ,

खिसियानी सी मुस्कान फेरे ,

असमंजस्य में दो नन्हे कदम ,

कभी आगे बढ़े ,

कभी पीछे को खिसके ,

किंककर्तव्यविमूढ़ मस्तिष्क,

बस हार -जीत की सोचे,

दिल की कौन सुने अंधड़ में,

            वो इक पल सुकून को तरसे,

समय की चाल बराबर ,

परवाह कहाँ उसे ,

कौन आगे बढ़ा ,

           और कौन पीछे छूटे।    

Thursday, January 11, 2024

मेरे राम

 

राम खास है , राम विशेष है ,

राम मनुष्य जगत में सर्वश्रेष्ठ है ,

राम पूजने के लिए नहीं है ,

राम अनुसरण के योग्य है ,

राम मनुष्यता के उदाहरण है ,

राम मनुजता की धरोहर है ,

राम राजा के रूप में अतुलनीय है ,

राम पुत्र रूप के मानक है ,

राम धैर्य और संयम की खान है ,

राम भ्रात प्रेम के रूपक है ,

राम दीन -दुखियों के मित्र है ,

राम दुष्टों के संहारक है ,

राम सबरी के प्रेम में भूखे है ,

राम अहिल्या उद्धारक है ,

राम रघुकुल तिलक है ,

राम सिया संग बीजक है ,

राम हनुमान के प्रिय है ,

राम धर्म के संरक्षक है ,

राम दया है , राम निधान है ,

राम नाम ही सम्पूर्ण है ,

राम खास है , राम विशेष है ,

राम मनुष्य जगत में सर्वश्रेष्ठ है। 





Friday, January 5, 2024

श्रीराम

 

 


बड़भागी भये हम सब जन ,

देख पायेंगे वो दृश्य महान ,

रामलला  विराजेंगे सिंहासन ,

हर तरफ हो मंगलगान। 

 

ख़त्म हुआ दूसरा वनवास ,

आयेंगे फिर रघुकुल निधान ,

कण -कण रोमांचित अयोध्या का ,

राम नाम ही सत्य अहान। 

 

राम सर्वथा , राम सर्वदा ,

राम संयम , राम मर्यादा ,

राम सबके , राम मेरे ,

राम नाम जगत में सदा।

 

युग बदला , समय बदला ,

बदला नहीं बस राम का नाम ,

हर्षित हर तन -मन आज ,

बसो हर ह्रदय हे ! करुणानिधान।

 

Sunday, December 17, 2023

चूहे -बिल्ली का खेल

  

आजकल समाज में गजब ,

चूहे -बिल्ली के खेल चल रहा है ,

मजे की बात - कौन चूहा है ,

और कौन बिल्ली ?

किसी को समझ नहीं आ रहा है ,

जो किसी के लिए चूहा है ,

वो किसी के लिए बिल्ली है ,

सरपट हर कोई ,

बेलगाम भाग रहा है ,

चूहे के लिए चारा हर जगह बिखरा पड़ा है ,

अगर जाए तो फिर बिल्ली से खतरा बड़ा है ,

बिल्ली का अहम बहुत बड़ा है,

आयेगा तो मेरे ही हत्थे ,

चुपचाप प्रतीक्षा में खड़ा है ,

चूहे के पास भी छठी इन्द्रिय है ,

हर बार गच्चा देने में उसने ,

भी अब पी एच डी कर ली है ,

बिल्ली को झाँसा देने के लिये ,

उसने भी एक वर्चुअल दुनिया गढ़ ली है ,

अब खेल डिजिटल हो गया है ,

बिल्ली हर बार ट्रोल हो जाती है ,

थोड़े दिन खेल से आउट होकर ,

नए अवतार में आती है ,

चूहे तब तक खा पीकर मोटे हो जाते है ,

बिल्ली मौका देखकर झपटा मारती है ,

बिना डकार लिये चूहे को पचा लेती है,

आजकल समाज में गजब ,

चूहे -बिल्ली के खेल चल रहा है ,

मजे की बात - कौन चूहा है ,

और कौन बिल्ली ?

किसी को समझ नहीं आ रहा है ।

 

Saturday, December 9, 2023

समाज

 

समाज को ,

आज खतरा सिर्फ ,

बुरे लोगों से नहीं है ,

उससे ज्यादा खतरा ,

उन अच्छे लोगों से है ,

जो अच्छेपन की आड़ में ,

अंदर से बुरे है ,

और अपनी स्वार्थसिद्धि के लिये ,

इस लबादे के नीचे विष लिये है ,

न ये पहचाने जा रहे है ,

और न इनके पास बुरे होने का ,

कोई ठप्पा है,

धीरे -धीरे समाज को ,

यही लोग दीमक की तरह ,

चट रहे है ,

जो वाकई अच्छे है ,

वो खामोश है ,

और जो घोषित बुरे है ,

अच्छे दिन उन्ही के चल रहे है,

बाकी सब एक दूसरे का मुँह ,

जानबूझकर नहीं तक रहे है ,

कई वजहें सामाजिक है ,

और कई व्यक्तिगत है ,

समाज धीरे -धीरे ढल ही रहा है ,

चीजों को आत्मसात कर रहा है ,

और फिर शायद इक दिन ,

यही समाज आदर्श हो जायेगा।

Saturday, November 11, 2023

इनायत

 

सबका अपना -अपना सफर ,

सबकी अपनी -अपनी दौड़ ,

सबके अपने -अपने सुःख -दुःख ,

सबकी अपनी -अपनी ठौर। 

 

कौन कहाँ से चला -कहाँ तक पहुँचा ,

सबकी अपनी -अपनी कहानी,

गुजरता रहेगा जिंदगी का कारवाँ ,

इक अनुभव का नाम ज़िंदगानी।  

 

कौन मिला , कौन बिछड़ा ,

क्या हार हुई , जीत क्या हुई ,

कितनों को मुस्कान दी ,

यही इस  सफर की कमाई। 

 

वक्त जो मिला है , नियामत है ,

उधार की साँसे , किराये का घर है ,

खोने जैसा कुछ भी नहीं यहाँ ,

जो मिला है , वो भी इनायत है। 

Tuesday, November 7, 2023

जीवन नैय्या

 


 जितना आपको जानना चाहता हूँ ,

उतना गहरा आपको पाता हूँ ,

मैं जड़बुद्धि , हे ! परमेश्वर ,

तेरी ओट में रहना चाहता हूँ। 

 

तेरे प्रकाश पुँज से उत्पन्न ,

तुझमें ही इक दिन विलीन होना है ,

तेरी रहमतों से ही ईश्वर,

जीवन पथ मेरा चलना हैं। 

 

न कोई शिकायत मेरी ,

न कोई शिकवा है ,

जो खोया -पाया नसीब मेरा ,

तेरी तो बस रहमत हैं।  

 

सुःख -दुःख के पलड़े ,

जीवन पथ चलते रहते है,

तुझ पर अटूट विश्वास से ,

दिन मेरे कटते रहते है।

 

सौंप देता हूँ रोज़ अपनी नैया ,

तू ही बस मेरा खैवय्या है ,

चिंता फिर किस बात की मुझे ,

जीवन सागर पार उतरना है। 


Thursday, November 2, 2023

सागर स्तुति

 


हाथ जोड़े तट पर बीत गए दिन तीन ,

जलाधीश का फिर भी मन न पिघला,

आँख बंद , ध्यान लगाए एक शिला पर ,

करते रहे याचना, स्तुति करे जगदीश। 

 

लक्ष्मण पुनि -पुनि समझाये ,

सामर्थ्य पर विश्वास करो कौशलधीश ,

शांति से जहाँ सुलझ जाये बात ,

क्यों उपयोग करो तूणीर –तीर कहे कुलधीश ।  

 

अनुनय -विनय गुण है वीर का ,

उसको सुशोभित होती है ,

युद्ध तो बहुत सरल मार्ग है ,

तलवार फिर शीश  माँगती है।  

 

जड़बुद्धि  विनय समझ न पाया ,

लोभी से कैसे दान की आशा ,

कुटिल न समझे प्रीत की भाषा ,

धैर्य , संयम की भी एक सीमा। 

 

लाओ , लक्ष्मण - तूणीर लाओ ,

अब धनुष पर अग्नि बाण संधान होगा ,

सूखा दूँगा इस जलातिरेक को ,

इस मूर्ख को अब ज्ञान न दूँगा। 

 

क्रोधित राम की आँखे हुई लाल ,

प्रत्यंचा चढ़ा , धनुष हाथ लेकर की टँकार ,

कांप उठे सब जल -थल- आकाश चराचर ,

"त्राहिमाम-त्राहिमाम " जग गया सागर। 

 

प्रकृति विधान सब आपका प्रभु ,

सब आपके आदेश अधीन ,

मैं जड़बुद्धि कैसे न मानूँ ,

जब साक्षात् खड़े हो जगदीश। 

 

युक्ति मैं बतलाता हूँ ,

सागर पार कराता हूँ ,

रामकाज में विघ्न कैसा ,

खुद का परलोक सुधारता हूँ।