Wednesday, March 17, 2010

बड़ी उलझन हैं कैसे सुलझाऊ !

बड़ी उलझन हैं कैसे सुलझाऊ !
मन को क्या कह के समझाऊ !
सोचा क्या था ज़िन्दगी में !
हो क्या रहा हैं कैसे समझाऊ !
नौकरी से मिले कुछ फुरसत तो !
कही एकांत में जाकर कुछ सोचु !
बचपन बीते बरसो बीते गए !
जवानी के दिन भी बस यु ही कट रहे !
कल के अच्छे के चक्कर में,
बरसो न जाने कहा खो गए.
चाहकर भी अब वो दिन नहीं ला सकता ,
फिर दिल को ही समझाता हूँ !
जो हैं अभी तेरे पास उसी में खुश हो ले,
कल की फिक्र छोड़, बीते कल कI चोला उतार !
बस आज को जी ले.

1 comment:

  1. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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