Wednesday, April 14, 2010

सांझ ....................


जन्म लिया एक घर में, उसको खुशियों से आबाद किया.

बचपन गुजरा जैसे तैसे , घरवालो को परेशान न किया.

सोचा आगे सब कुछ अच्छा होगा, फिर एक दिन अपना मायका छोड़ा.


पहुची एक नए जहाँ में, सबको फिर अपना समझा.

छोड़ दिए सब अपने सपने , किसी के सपनो को अपना लिया.

कब बीत गयी जवानी , पता भी नहीं चला.

जिंदगी की उलझनों में खुद को भुला दिया.

अपना परिवार , अपने बच्चे - जीवन इन सब पर कुर्बान कर दिया.

जीवन कब बीत गया, पता भी न चला.

जिनके लिए जीवन अर्पण किया, एक एक कर सब छोड़ चले .

जीवन के इस साँझ में मुझे अकेला कर गए.

आज उस डूबते सूरज को निहारती हूँ,  ज़िन्दगी की साँझ में कितनी अकेली रह गयी हूँ.

5 comments:

  1. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

    isiliye dobara aa gya padne

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  2. जीवन के इस साँझ में मुझे अकेला कर गए.
    ... आज यही सबसे बड़ी बिडम्बना है, माँ-बाप अपने बच्चों के लिए जिस तरह संघर्ष करते दिखते हैं उन्हें बुढ़ापे में सहारा देने के नाम पर अकेला छोड़ दिया जाता है...
    काश आज यह बात समझ पाते कि कल अगर उनके साथ भी यह सब हुआ तो कैसा लगेगा?
    बहुत अच्छे सुविचार ...
    हार्दिक बधाई

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  3. Sir,

    Really this poem is amazing. I am your biggest fan now after read thsi poem. This poem dedicated for all Girls & ladies. Because after the birth of girl she is always doing scarifies. I want to dedicate this poem to my Sweet heart MAA.
    Ganesh Chand Kandpal

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  4. Sir,

    I have one request to you, can you write down one poem for my someone special, I want to dedicate one poem to her, because after her entrance my life is totally changed. I hope you accept my request.

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