Monday, July 5, 2010

पहला मील का पत्थर.............

पीछे मुड़कर देखने की आदत से अब तौबा कर ली हैं.
यादो को बाट  कर, अच्छी यादे सारी गठरी में भर ली हैं.
बुरी यादो को  तिलांजलि दे दी हैं.

जब से निकला हूँ अंतर्मन यात्रा पर,
सोचता हूँ दुनिया उतनी बुरी नहीं हैं.

दुसरो की कमियाँ खोजने से पहले ,
अपनी गिरेबान झाकने की हिम्मत आ गयी हैं.

लगता हैं अब सारा जहाँ मेरे लिए हैं.
एक चेहरे को खोजो, हजार अच्छे चेहरे बगल में ही खड़े हैं. 

अंतर्मन की इस यात्रा में , मैंने बुराईया निकलना छोड़ दिया हैं.
खुद की खोज में एक मील का पत्थर शायद मैंने छू लिया हैं.

2 comments:

  1. जब से निकला हूँ अंतर्मन यात्रा पर,
    सोचता हूँ दुनिया उतनी बुरी नहीं हैं.

    दुसरो की कमियाँ खोजने से पहले ,
    अपनी गिरेबान झाकने की हिम्मत आ गयी हैं.

    सब अंतर्मन की यात्रा पर निकले .. तो ये दुनिया स्‍वर्ग ही हो जाए !!

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  2. अंतर्मन की इस यात्रा में , मैंने बुराईया निकलना छोड़ दिया हैं.
    खुद की खोज में एक मील का पत्थर शायद मैंने छू लिया हैं.

    गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

    बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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