Thursday, September 9, 2010

कागजो की आपबीती ....( दूसरा भाग)

सुनकर करेंसी नोट के कागज़ की दास्तान,

सारे हो गए हैरान,

जिसे सारे अब तक बड़ा खुशकिस्मत समझ रहे थे,

उसी पर अब सारे तरस खा रहे थे,

अश्रुपूर्ण नयनो को लेकर जब वो नीचे उत्तरी,

चुपचाप जाकर अपनी सीट पर बैठी,

जो अब तक उसे ललचाई नज़रो से देख रहे थे,

अब वो बगले झांक रहे थे.

हर चीज़ जो चमकती है, सोना नहीं होती ,

एक दुसरे के कान में कह रहे थे.

वो भी अपनी बिरादरी की ही हैं,

उसके दुःख में सारे शरीक हो रहे थे.

किसी की किस्मत और हैसियत से जलो मत,

वो भी आग में तप कर उस जगह काबिज़ हुआ हैं.

सब अपनी अपनी जगह राजा हैं,

सबका अपना अलग अलग रास्ता,

जिसका जो काम उसी को भाता हैं,

हर ख़ुशी के पीछे दर्द का बड़ा सैलाब हैं.

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