Tuesday, November 16, 2010

सिसकिया लेती ज़िन्दगी ........

सुबह उठे , तैयार हुए और बैग पकड़ा और चल दिए.

दिन भर सर सर कहते बिताया और शाम को फिर बैग लेकर चल दिए.

बस में धक्का मुक्की के बाद पसीना पोछते हुए घर पहुच गए.

और निढाल होकर चारपाई में लेट गए.



बीवी ने कुछ पूछा तो झला दिए, बेटे ने एक सवाल पूछा तो उसको हड़का दिए.

मम्मी ने पूछा " बेटा ! क्या हुआ? "

उसको भी बिना कुछ बताये टी वी देखने बैठ गए.

रात का खाना खाया और फिर सो गए.



रोज़ की इस दिनचर्या से कम कितना उकता गए,

ज़िन्दगी जो कभी हमारी थी, सच में कितना पराया कर गए.

हफ्ते के छ दिन ऑफिस को दे दिए और सातवा दिन जिसे संडे कहते है ,

थकान मिटाने में गुजार दिए.



अब कहाँ बचा कुछ सोचने को, कुछ समय परिवार के साथ बिताने को,

सपने में भी कभी बॉस की डांट सुनायी देती हैं,

टार्गेट पूरा नहीं होने का डर रात को भी जगा देती हैं.

सच में ज़िन्दगी अब बस सिसकिया लेती हैं.................

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