Monday, March 29, 2010

आओ नयी शुरुवात करे.....................

कितनी बार दिल ने चाहा बदल लेते हैं चलो राह, उठे कदम न जाने कितनी बार थम गए !
शायद इसलिए हम जहा थे वही रह गए,हमारे साथी जिन्होंने हिम्मत की- कहाँ थे कहाँ पहुच गए.

शिकवा उनकी तरक्की से नहीं हैं, हम दिल से काम लिए और वो दिमाग की कहे सुनते गए.
उन्होंने हर अवसर को पहचाना , हम अवसर गवाते बदते रहें.

अब भी दिमाग कहता हैं, वक़्त अभी गुजरा नहीं .
जो बीत गया उसको भुला, चुन अभी भी अपनी राह.

और सरपट उस पर भाग,राह पकड़ ही लेगा एक दिन,
उस दिन होगा तुझको खुद पर नाज़.

हम सबकी यही कहानी हैं,आपबीती फिर सुनानी हैं.
क्यूँ न हम मिसाल बने, अपनी नज़रों में ही महान बने.

खुद फक्र कर सके अपनी ज़िन्दगी पर, अपनी कहानी खुद क्यूँ न लिखे.
आओ की अब भी वक़्त ठहरा हैं हमारे लिए, एक नयी शुरुवात करे.

भ्रमो के मायाजाल को काटे , खुद पर यकीन करे.
चुने अपनी राह वही , जो खुद को लगे सबसे सही.

Friday, March 26, 2010

रुकना नहीं , झुकना नहीं.

रुकना नहीं , झुकना नहीं.
मुड़ना नहीं, थकना नहीं.
रख अर्जुन सी नज़र लक्ष्य पर ,
और तुझे कुछ देखना नहीं .

डिगाए तुझे कोई कितना ,
रोड़े कितने अटकाए कोई .
रुख मोड़ना हैं हवायो का तुझे,
हर बाधा को हंस के सहना हैं तुझे.
हर मुस्किल को ठोकर मारता चल ,
लक्ष्य की तरफ कदम बदाता चल.

कोई रोके , कोई टोके ,
कोई चाहे कुछ भी कहे .
अपने दिल को समझाता चल,
अपनी धून पर बस चले चल चला चल.
कोई तेरा साथ न दे ,
कोई परवाह मत कर ,
अपने होसले को तलवार बना ,
हर मुश्किल को काटता चल.

यही दुनिया तुझे सलाम करेगी ,
जब तू मंजिल को पायेगा .
झुकेगी तेरी आगे ये दुनिया,
अपनी मेहनत का फल तू पायेगा.

Monday, March 22, 2010

रफ्ता रफ्ता कट रही ज़िन्दगी....

रफ्ता रफ्ता कट रही ज़िन्दगी,
कुछ रुलाती,कुछ हंसाती ज़िन्दगी.
धीरे धीरे मंजिल की तरफ बढ रही ज़िन्दगी,
कितनो को पीछे छोड़ते हुए,
कितने नए लोगो को अपना बनाती हुई,
रफ्ता रफ्ता कट रही ज़िन्दगी,
एक मंजिल को पा लिया तो,
दूसरी मंजिल ले कर तैयार खड़ी ज़िन्दगी,
हर रोज़ कही न कही फ़साये रखती हैं ज़िन्दगी.
जितना इसे समझो उतना उलझाती हैं ज़िन्दगी,
रफ्ता रफ्ता कट रही हैं ज़िन्दगी.

Wednesday, March 17, 2010

बड़ी उलझन हैं कैसे सुलझाऊ !

बड़ी उलझन हैं कैसे सुलझाऊ !
मन को क्या कह के समझाऊ !
सोचा क्या था ज़िन्दगी में !
हो क्या रहा हैं कैसे समझाऊ !
नौकरी से मिले कुछ फुरसत तो !
कही एकांत में जाकर कुछ सोचु !
बचपन बीते बरसो बीते गए !
जवानी के दिन भी बस यु ही कट रहे !
कल के अच्छे के चक्कर में,
बरसो न जाने कहा खो गए.
चाहकर भी अब वो दिन नहीं ला सकता ,
फिर दिल को ही समझाता हूँ !
जो हैं अभी तेरे पास उसी में खुश हो ले,
कल की फिक्र छोड़, बीते कल कI चोला उतार !
बस आज को जी ले.