Friday, July 23, 2010

तीसरा पड़ाव.........इच्छा का कोई अंत नहीं

" इच्छा का कोई अंत नहीं,

थोड़े से अब किसी का पेट भरता नहीं,

जो कुछ हैं उसमे अब किसी को संतोष नहीं,

और ज्यादा , ज्यादा की इस दौड़ का कही कोइ अंत नहीं.



जो हैं शायद वो कम हैं , और चाहिए !

मगर कितना चाहिए किसी को इसका पता नहीं.

सबकी की परेशानियों का शायद मूल यही.

और......... और......की इस अंधी दौड़ में,

ज़िन्दगी हर वक़्त सिसकती रही. "

Thursday, July 15, 2010

What is True Relationship?

A boy and a girl were playing together. The boy had a collection of marbles. The girl had some sweets with her. The boy told the girl that he will give her all his marbles in exchange for her sweets. The girl agreed.


The boy kept the biggest and the most beautiful marble aside and gave the rest to the girl. The girl gave him all her sweets as she had promised.

That night, the girl slept peacefully. But the boy couldn't sleep as he kept wondering if the girl had hidden some sweets from him the way he had hidden his best marble.


Moral of the story: If you don't give your hundred percent in a relationship, you'll always keep doubting if the other person has given his/her hundred percent.. This is applicable for any relationship like love, employer-employee relationship etc., Give your hundred percent to everything you do and sleep peacefully.

( I Don’t know who wrote this story, but one of my friend forwarded it to me and I really like it to share it with all my readers)

Wednesday, July 7, 2010

दूसरा पड़ाव ......अंतर्मन की यात्रा .............

खुद पर भरोसा ज्यादा हो गया हैं,
दुसरो से उम्मीदे करना बंद कर दिया हैं .
जीवन पथ के इन रास्तो को ,
अकेले नापने की कवायद शुर कर दी हैं.

मेरे अन्दर खुद खुदा का अंश हैं,
"अहम् ब्र्ह्मष्मी "मंत्र की महता समझ आ गयी हैं.
लेकर साथ अपने अर्धांगिनी और बिटिया को,
जीवन युद्ध में यात्रा अपनी शुरू कर दी हैं.

न किसी से कोई बैर , न किसी से कोई गिला शिकवा,
जीवन पथ के अनजाने सफ़र में हर मुमकिन कोशिश शुरू कर दी हैं.
जीतना हैं इस जंग को हर हाल में ,
मन में ठान ली हैं.

निराशा के बादलो को अपनी उम्मीदों के सूरज से छठा दिया हैं,
विश्वास और संकल्प से हर परिस्थिति से मुकाबला करना हैं.
इश्वर के दिए इस वरदान "जीवन" को,
हर हाल में सार्थक करना हैं. 

Monday, July 5, 2010

पहला मील का पत्थर.............

पीछे मुड़कर देखने की आदत से अब तौबा कर ली हैं.
यादो को बाट  कर, अच्छी यादे सारी गठरी में भर ली हैं.
बुरी यादो को  तिलांजलि दे दी हैं.

जब से निकला हूँ अंतर्मन यात्रा पर,
सोचता हूँ दुनिया उतनी बुरी नहीं हैं.

दुसरो की कमियाँ खोजने से पहले ,
अपनी गिरेबान झाकने की हिम्मत आ गयी हैं.

लगता हैं अब सारा जहाँ मेरे लिए हैं.
एक चेहरे को खोजो, हजार अच्छे चेहरे बगल में ही खड़े हैं. 

अंतर्मन की इस यात्रा में , मैंने बुराईया निकलना छोड़ दिया हैं.
खुद की खोज में एक मील का पत्थर शायद मैंने छू लिया हैं.

Thursday, July 1, 2010

तलाश ..........

निकल पड़ा हूँ खुद को ढूँढने,
अंतर्मन को अपने टटोलने,
हर रोज़ पूछता हूँ खुद से सवाल,
आज कितनी की तुने खुद की तलाश,

यु ही तो रचा नहीं होगा खुदा ने मुझे,
सौंपा होगा कुछ न कुछ नेक काम.
बस उसी अंतर्मन की यात्रा को,
शुरू हो गया हैं मेरा अभियान.
 
 
न कोई गेरुआ वस्त्र, न कमंडल हाथ में ,
न कोई मंदिर मस्जिद के चक्कर ,
दिल मैं रखकर उस खुदा को,
रोज़ सांसारिक जीवन जी कर,
शुरू कर दी अपनी तलाश.........