Wednesday, December 28, 2011

नए साल की सभी को हार्दिक शुभकामनाये

फिर एक नए साल की स्वागत को पलके बिछाए खड़े हम, 
२०११ को अलविदा कहने को कितने उतावले हम, 
कितनी खट्टी मीठी यादे पीछे छोड़ , 
लो आने वाला हैं एक नया साल आपके सामने. 
सपनो को फिर पंख लगे गए, 
नए साल के लिए अरमान फिर हरे हो गए. 
जनवरी से शुरू होता हर साल , दिसंबर में आकर रुक जाता हैं. 
फिर कैलेंडर हमारा नया आ जाता हैं. 
हर गुजरता साल हमारे जीवन का एक कम हो जाता हैं, 
हम अपनी उम्र में एक साल और जोड़कर , 
फिर आगे बढ जाते हैं , 
हर साल हमारा यूँ ही गुजर जाता हैं. 
चलो ! २०११ का अध्याय ख़त्म कर आगे बड़ते हैं, 
२०१२ का तहेदिल से स्वागत करते हैं. 
लगायेंगे हिसाब किताब कभी इन बीते सालो का, 
जब कभी फुर्सत के कुछ पल हमारे पास होंगे, 
अभी तो भागमभाग की इस ज़िन्दगी में, 
बस कैलेंडर को बदल लेते हैं , 
आओ ! फिर से एक नए साल में प्रवेश करते हैं. 

नए साल की सभी को हार्दिक शुभकामनाये ! 

Sunday, December 18, 2011

इतेफाक से मिली ये ज़िन्दगी .........

इतेफाक से मिली ये ज़िन्दगी , 
कही इतेफाक ही बन कर न रह जाये, 
कुछ तो करे ऐसा , 
की हमारा भी नाम हो जाये. 
जीते तो हैं करोडो  दुनिया में, 
चंद नाम ही याद रह जाये. 
अपने लिये ही जीए तो क्या जीए, 
की दो पीदियो के बाद ही अपने हमें कोस जाए, 
लिख इबारत कुछ ऐसी की, 
जैसे पत्थर पर लकीर बन जाये. 
पैसा कमा, ऐश कर- सब कुछ ठीक   हैं, 
ज़माने के लिए क्या कर गया बस यही याद रह जाये. 

Sunday, December 11, 2011

१०० साल की दिल्ली .............


इस शहर में कुछ तो बात हैं, 
हर बेगाना भी इससे प्यार करता हैं, 
छोड़ के जब आया था इस शहर अपने गाँव को, 
वादा किया था जल्दी ही छोड़ दूंगा इस शहर को, 
मगर दिल्ली शहर की बात ही कुछ निराली निकली, 
इससे दस सालो में इतना प्यार हुआ की, 
बीस साल पुराने अपने गाँव शहर की यादे धुंधला गयी, 
कहते हैं आज दिल्ली को राजधानी बने १०० साल हो गए हैं, 
आज के ही दिन १९११ में जोर्जे पंचम की ताजपोशी हुई थी, 
दिल्ली दरबार लगा था दिल्ली में, इसकी शान और बड़ी थी, 
इतिहास को थोडा खंगाला तो दिल्ली को कुछ करीब से जाना, 
कितनी बार उजड़ कर फिर से दिल्ली खडी हुई थी, 
जो भी आया लूट खसोट कर ले गया, 
दिल्ली अपने गम चुपचाप सहती रही, 
हर बार फिर बसी फिर से न ख़त्म होने के लिए, 
यमुना के तीरे तीरे बसी मेरी दिल्ली , 
न जाने कितनी बार रोती बिलखती रही,  
मगर आज गर्व हैं मुझे इस दिल्ली पर, 
इसकी शानो शौकत पर, 
जता दिया दिल्ली ने दुनिया को, 
दिलवालों की हैं ये दिल्ली, आओ तो स्वागत करेंगे 
चले भी जाओगे यहाँ से अगर कभी, 
इसे कभी न भूल पाओगे. 
न जाने कितने सल्तनते देखी, कितने राजाओ की दुन्दुभी सुनी, 
दिल्ली  यु ही चुपचाप चलती रही. 
यमुना के तीरे तीरे अपने को रचते बसते , 
सबको कुछ न कुछ देते हुई, 
दिल्ली अब जाकर कुछ शांत हुई. 

Friday, November 18, 2011

विश्राम ...........

कुछ लिखने का मन क्यों नहीं करता, 
शब्दों को ढालने की कोशिश तो करता हूँ मगर, 
कुछ पंकित्यो के बाद कलम सरकती ही नहीं, 
शायद ये आजकल काम ज्यादा होने की थकावट हैं, 
या फिर मुझे ही कुछ नहीं सूझ रहा हैं, 
रचनात्मकता को जगाता तो हूँ हर रोज़, 
मगर किसी विषय पर टिकता क्यों नहीं हूँ. 
शायद मेरा कवि मन विश्राम कर रहा हैं. 
कुछ नए विषयो को टटोल रहा हैं. 
तब तक दुनियादारी के कुछ काम कर लेता हूँ. 
थोडा सा विश्राम लेकर फिर आपके साथ कुछ नया लाने की कोशिश करता हूँ.  

Monday, September 19, 2011

ये कैसी उलझन .......



बॉस कहता हैं ऑफिस तेरी पहली प्राथमिकता हैं,

क्यूंकि तेरी रोज़ी रोटी इसी से चल रही हैं.

आठ घंटे तो दिखाने के हैं, बाकी के घंटे काम करने से ही आगे दरवाजे खुलने हैं.

घर पर बीवी कहती हैं ,

घर तेरी पहली प्राथमिकता हैं , घर पर ज्यादा समय देना ज्यादा मह्त्वपूर्ण हैं.

दिमाग घनचक्कर की तरह घूम रहा हैं,

किस चीज़ को पहली प्राथमिकता दू,

उलझन बड़ी हैं, नौकरी और घर के बीच में ज़िन्दगी फंसी पड़ी हैं.

इस विषय पर लिखने को तो बहुत कुछ हैं मगर, यहाँ भी असमंजस हैं.


किसी एक पलड़े को भारी करने से अगले का अपने ऊपर ही गिरने भय हैं.

आप लोग खुद ही समझदार हैं ,

between the lines पढने में माहीर हैं.

खुद ही मर्म को समझ लीजियेगा,

अगर कोई रास्ता सूझे तो सबके साथ साझा जरुर करियेगा.

Sunday, September 18, 2011

डोर..

थामे डोर ज़िन्दगी की चले थे किस ओर ,


समय के थपेड़ो ने पंहुचा दिया किस ओर,

कुछ अपनी करनी और कुछ भाग्य के सहारे ,

देखो कहाँ से कहाँ पहुच गए हम लोग.

Saturday, September 17, 2011

मैं कौन हूँ .............

मैं जब पैदा होता हूँ, तो मेरे माँ-बाप मुझे अपने सपनो का सौदागर समझते हैं.


मैं थोडा बड़ा होता हूँ, तो स्कूल की फीस भरने के लिए माँ बाप को उदास देखता हूँ.

जैसे तैसे स्कूल से निकल कर कोलेज पहुचता हूँ, तो नए कपड़ो को तरसता हूँ.

माँ बाप की दो रोटी के जुगाड़ की कोशिशो को समझता हूँ.

उनके सपनो को पूरा करने के लिए मेहनत करता हूँ.

सरकारी नौकरी लग जाए तो परिवार को सहारा मिले,

सोच सोच कर हर फॉर्म भरता हूँ.

फिर थक हार कर प्राइवेट नौकरी की राह पकड़ता हूँ.

फिर हर साल नौकरी बदले तो कुछ पैसे मिले,

कही एक जगह टिक कर नहीं रहता हूँ.

बस के धक्के , बॉस की डांट और चलो कल अच्छा हो जायेगा,

की कशमकश में जवानी गुजारता हूँ.

थोडा जमने की कोशिश में शादी करता हूँ,

माँ बाप के सपनो को छोड़ अपनी दुनिया बसाने की कोशिश करता हूँ.

ऑफिस के टेंसन घर पर ले जाकर बीवी से झगड़ता हूँ.

बच्चो के आगमन से फिर नयी कल्पनाये बुनता हूँ.

उनके लिए रोटी , कपडा और मकान की जुगत बिठाने में लग जाता हूँ.

अपने आदर्श , अपनी कुंठाए गाहे बगाहे इज़हार कर लेता हूँ.

कभी लाइनों में लगे लोगो से , या कभी बस के धक्के मुक्को में ,

अपने गुस्से का इज़हार करता हूँ.

कभी किसी नेता की रैली में या कभी अन्ना हजारे के समर्थको ,

मैं ही शामिल होता हूँ.

जब अन्याय मेरे साथ होता हैं, मैं लोगो को उनके साथ न देने के लिए कोसता हूँ.

जब सड़क के किसी के साथ अन्याय होता हैं तो चुपचाप मैं ही खिसकता हूँ.

मैं कौन हूँ .............मैं आम आदमी हूँ.

Sunday, September 11, 2011

खुदी को साबित.........

इतेफाक से मिली ये ज़िन्दगी, खुदा की नियामत हैं

खुदी को साबित करने का एक अवसर हैं.


निशाँ इतने छोड़ जाने हैं इस धरा पर,

लोग कहे की हाँ ! आया था एक आदमी ज़मी पर.

ज़िन्दगी को जीना हैं इस तरह से,

जिंदगानी से कोई शिकवा न रह जाए,

लोगो का इतना काफिला हो रुखसती के समय की,

खुदा को भी तुझ पर गुमान हो जाए.

यूँ तो अरबो जीवन यहाँ हैं, लेकिन कुछ ऐसा कर गुजर,

की जब पलटे तू ही पन्ने अपने जीवन की किताब के,

फक्र से तेरा सीना चोडा हो जाये.



Saturday, August 20, 2011

जय हो अन्ना ! हम तुम्हारे आभारी हैं......

घुट घुट कर जीते रहे,


खून के आंसू पीते रहे.

जानते हुए भी खामोश थे,

गर्दन नीचे किये चलते रहे,

जानते थे बहुत कुछ गलत हो रहा हैं,

मगर आदतन खामोश रहे,

क्यों .....

शायद कौन पहल करे ,

यही सोच सोच कुड़ाते रहे,

फिर .....

एक दिन एक व्यक्ति ने हिम्मत दिखाई ,

विरोध का बिगुल फूँका ,

तो हमारे अन्दर सहमा कुचला और उपेक्षित इंसान जाग उठा.

सबको जैसे पंख लग गए.

एक एक के जुड़ने से सैलाब बन गया.

जनशक्ति का एहसास सरकार को भी हो गया.

जय हो अन्ना ! हम तुम्हारे आभारी हैं,

तुमने हमारे अन्दर के इंसान को जगा दिया.

( Suppot Anna Hajare, this veteran is fighting for us for our better tommorrow)

Tuesday, August 16, 2011

गाँधी तेरे देश में......

गाँधी तेरे देश में देख तेरे अन्ना का क्या हाल हो गया ?


तेरे रास्तो पर चल वो तिहाड़ जेल पहुच गया.

सच में आज तुम होते तो फूट फूट कर रोते,

अहिंसा के मार्ग पर चलना आपके देश में ही अब पाप हो गया.



Saturday, August 6, 2011

सपने और हकीकत ........

लडकपन में सोचते थे बड़े होंगे,


शहर जायेंगे और नौकरी करेंगे,

खूब पैसे कमाएंगे और

बढ़िया से जियेंगे.

बड़ा सा घर बनायेंगे ,

लम्बी सी कार खरीदेंगे,

दुनिया में सैर करने जायेंगे.

और लोगो को ठाठ दिखायेंगे,

बड़े हुए और शहर भी आये ,

नौकरी भी की मगर आगे के सपने पूरे नहीं हो पाए.

घर तो दूर की बात, किराये के मकान में रहते रहते बेहाल हो गए,

लम्बी सी गाड़ी तो कोसो दूर की बात जान पड़ी,

स्कूटर खरीदने के पैसे भी जमा नहीं हो पाए.

रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में ऐसे उलझे ,

घूमना तो दूर अपने गाँव भी जाने के लिए सोचने लगे.

सच में यही ज़िन्दगी हैं ................

( आगे की बात.... आप सब इतने समझदार हैं - खुद ही अपनी ज़िन्दगी में झांक लीजिये)

Tuesday, July 26, 2011

शुक्रिया .................


सबसे पहले शुक्रिया उस खुदा का जिसने मुझे इंसान बनाने की सोची,
फिर शुक्रिया मेरे माता पिता का, जो मुझे धरती पर लाये. 
और मेरी ज़िन्दगी को एक आकार दिया. 
शुक्रिया मेरे भाई बहनों का , जिनके होने से में अपने वजूद को समझ पाया. 
शुक्रिया मेरे शिक्षको का, जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया. 
शुक्रिया मेरे दोस्तों का जिन्होंने मुझे जिंदादिली सिखाई. 
शुक्रिया मेरे उन सब नाते रिश्तेदारों का जिन्होंने मुझे प्यार दिया. 
शुक्रिया मेरे सब जानने वालो का जिन्होंने मुझे कुछ न कुछ सिखाया. 
शुक्रिया मेरी पत्नी का जिसने मुझे मेरे महत्व का ज्ञान कराया. 
शुक्रिया मेरी बिटिया का जिसने मुझे फिर से जीना सिखाया.

(अपने ३३ वे जन्मदिन पर मैं उन सभी लोगो का शुक्रिया जो मुझे इस जीवन सफ़र में मिले हैं )

Wednesday, June 15, 2011

मेरी सौवी कविता ........बदलाव

जब तक हम नहीं बद्लेगे, दुनिया नहीं बदलेगी. 
जब हम बदलेंगे , तब ये दुनिया बदलेगी. 
बदलने और बदलवाने की ये आंधी ,हम से ही शुरू होगी , 
तब जाकर आगे बढेगी. 
एक एक के बदलने से, कारवां बनता जायेगा, 
एक दिन फिर ये कारवां , बदलाव का सुनहरा सैलाब लायेगा. 
तो बदलने की शपथ आज से ही लेनी होगी, 
कल तो आता नहीं कभी, अभी से शुरुवात करनी पड़ेगी. 
जो बुरा हैं वो बुरा हैं उसका विरोध करना ही पड़ेगा, 
जो अच्छा है उसको स्वीकार करना ही पड़ेगा. 
बनाना है दुनिया को अपने मुताबिक तो, 
कुछ तो यहाँ करना पड़ेगा. 

Sunday, June 5, 2011

बाबा जी का सत्याग्रह ...

बाबा जी ने कसम खाई, 
भ्रष्टाचार मिटाना हैं, 
विदेशो में पड़ा सारा काला धन, 
अपने देश में लाना हैं. 
रामलीला मैदान में आकर हुंकार जोरो से भरी, 
सरकार ने भी अपनी कुटिल चाल चली, 
बाबा के सत्याग्रह को ना जाने किसकी नजर लगी, 
दो दिन में ही सरकार ने दमन का चाबुक चलाया, 
बाबाजी ने महिला वेश में अपने को छुपाया, 
जैसे तैसे बाबाजी अपने धाम पहुचे, 
सरकार को खूब खरी खोटी सुना कर, 
फिर अनशन पर बैठे, 
न जाने कौन सही हैं और कौन गलत, 
आम आदमी अब ये सोचे ! 

Monday, May 30, 2011

क्या गम और क्या ख़ुशी ?

गम और ख़ुशी कुछ नहीं होता संसार में, 
बस भावनाओ का ज्वार और दिल का  बहकावा होता हैं. 
हमारे अनुसार हो गया तो ख़ुशी हो जाती हैं, 
हमारे अनुसार नहीं हुआ तो गम हो जाता हैं. 
अब ये हमारे दिल का छलावा नहीं हैं तो क्या हुआ? 
कुछ पल बीत जाने का बाद दिल को ही लगता हैं, 
जो ख़ुशी हैं उसमे भी कुछ गम हैं , 
और जो गम हैं वो भी ठीक हैं. 
गम और ख़ुशी के बीच ही झूलता रहता हैं मन, 
उलझा कुछ सुलझा बहकता रहता हैं मन. 

Friday, May 27, 2011

Life = Birth +……………………………….+Death


Life is a journey,
Begins with birth ,
End with death,
But in between Birth and death,
Every dot is ours and only ours,
How we convert these dots in to what,
This all depends on us.
Convert these dots into yours choice,
Add more dots as you can,
Convert every dot in to memorable page,
Make your life a readable book,
Set some path to pave others. 

Wednesday, May 18, 2011

You are not alone in the world …………….


When you are sad,
Remember you are not alone in the world.
When you are happy ,
Remember you are not alone in the world.
When the time against you,
Remember there are millions like you,
When everything is going in your way,
Remember there are thousands like you.
 One thing is sure in all times,
You are blessed with this beautiful life,
Which comes after journey of millions mile,
This is true that we are alive,
Whatever the time and whatever the situation,
Remember we are the special child.
But don’t forget to remember,
You are not alone in the world. 

Thursday, May 5, 2011

अप्रैल से लगाव....

अप्रैल का महिना हर नौकरीशुदा आदमी के लिए खास होता हैं, 
साल भर की उसकी मेहनत का इनाम उसे मिलता हैं, 
इसी आस में  वो ग्यारह महीने काट देता हैं, 
अप्रैल आएगा तो नयी खुशियों की सौगात लायेगा. 
कितने सब्जबाग वो जनवरी से देखने शुरू कर देता हैं, 
कल्पना में बड़े हुए पैसो का हिसाब किताब लगाना शुरू कर देता हैं, 
अप्रैल हर साल आता हैं और चला जाता हैं, 
देकर उसे कुछ मूंगफली के दाने, बादाम की आस अपने साथ ले जाता हैं. 
उसके सपनो में फिर तुषारापात होता हैं, 
" और बढ़िया काम करो " बॉस की ये बात सुन सुनकर , 
अपनी ज़िन्दगी के तमाम साल यूँ ही गुजार देता हैं. 

इन्क्रीमेंट ....


वो अपने इन्क्रीमेंट को लेकर नाखुश दिखा, 
रात भर सोचा और सुबह बॉस के पास पंहुचा, 
दिल की सारी भड़ास निकालने के बाद , 
बॉस को इस्तीफे देने की बात कहकर , 
चुपचाप अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. 

थोड़ी देर सोचने के बाद फिर बॉस से टाइम माँगा, 
और फिर बॉस से मिलने चल दिया. 
बॉस  ने उसको कोफी पिलाई और कहां, 
" हाँ ! अब बताओ तुम्हे क्या कहना हैं, "
उसने एक सांस में अपने साथियों के उससे ज्यादा सैलरी  बड़ने का जिक्र किया , 
और पुछा , " सर, मैंने भी तो साल भर मेहनत से काम किया फिर मेरे साथ ऐसा सलूक क्यों किया?"
बॉस ने उत्तर दिया, " तुम अपनी सैलरी कम बढने से नाखुश हो या दुसरो की तुमसे ज्यादा बड़ी हैं, इससे परेशान हो.
मेरे हिसाब से तुम्हारी सही बड़ी हैं, तुम ही बताओ तुमने साल भर में ऐसा क्या किया, 
जो मैं कह सकू की तुम औरो से अलग हो.
इस साल कुछ असाधारण करके दिखाओ , अगले साल तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर दूंगा "
वो बॉस की बात सुनकर मर्म समझ गया, पिछले दो साल में ३ बॉस को बदलते देख चुका, 
चुपचाप सीट से उठा , और फिर से अपने काम में लग गया. 

जय हो इन्क्रीमेंट की ! जय हो बॉस की ! 

Wednesday, May 4, 2011

रोज़ सुबह........

रोज़ सुबह सवाल करती हैं ज़िन्दगी मुझसे, 
आज नया क्या करेगा ? 
रोज़ शाम फिर मुझे कचोटती है, 
यूँ ही गवा दिया फिर तुने दिन एक नया. 
ये जदोजहद न जाने कितने सालो से रोज़ होती हैं. 
मैं रोज़ रात को फिर अगले दिन को यादगार बनाने की कसम खाता हूँ, 
अगले दिन फिर रात को अपने को वही पाता हूँ. 

Wednesday, April 27, 2011

असमंजस ..................

छोटा सा टॉप और जींस पहनकर , 
वो बस में सफ़र कर रही थी, 
कही से कुछ न दिख जाये, 
बार बार टॉप और जींस को एडजस्ट कर रही थी, 
फिर अपने आस पास के लोगो की घूरती निगाहों से, 
बचने का प्रयास कर रही थी. 

मैं ये सब माजरा देख रहा था, 
लड़की को फैशन के चक्कर में, 
परेशान होते देख रहा था. 
अब ये दुनिया के साथ चलने की कवायद थी उसकी, 
या यार दोस्तों से पीछे रहने का डर उसे सता रहा था. 
कुछ भी कारण हो वो खुद को बड़ी असहज पा रही थी. 

Sunday, April 17, 2011

अहम ब्रह्म्ष्मी .........

जब भी तू हो उदास, मन भर आये होकर कोई बात.


दुनिया जब बेगानी सी लगने लगे,

अपने से जब थोडा भरोसा डगमगाने लगे,

हर चीज़ जब बुरी लगने लगे, किसी काम में मन न लगे,

तसल्ली से किसी एकांत जगह पर बैठ ,

बस थोडा आँख से आंसू निकाल,

और फिर जब थोडा मन हल्का हो जाए,

तो एक मंत्र रख याद,

दस बार खुद से " अहम ब्रह्म्ष्मी " बोल डाल,

खुद को खुदा की एक सम्पूर्ण रचना मान,

याद कर वो लोग, जो बिना कुछ होते हुए भी हंस कर जी रहें हैं,

याद कर वो लोग, जो तेरे पीछे खड़े हैं.

याद कर अपनी माँ का तेरे लिए वो लाड प्यार,

याद कर पिता का वो डांट में तेरे लिए आशीर्वाद,

तू खुद में पूरा हैं , तुझमे में कोई कमी नहीं हैं,

बस थोडा हालातो का धोखा हैं, और समय नहीं तेरे साथ.

मगर ये भी कितने पल ठहरेगा , तेरे सोचने मात्र से ही काफूर हो जायेगा,

फिर से तू खड़ा होगा, लेकर अपने सपनो को साथ.

चल- चला - चल तेरे आगे सारा नीला आकाश.

Wednesday, April 13, 2011

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं...

किताबो में बहुत पढ़ा की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं,


जब तक अपने छोटे से गाँव में रहा ,

तो यकीनन लगता था की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं,

दुसरे गाँव में भी किसी एक घर में कुछ अच्छा या बुरा होता था,

तो जाने अनजाने खबर हो ही जाती थी,

ख़ुशी की खबर से अच्छा लगता था तो दुःख की खबर में बुरा लगता था.

मगर जब से शहर आया हूँ,

ये उक्ति बेमानी सी लगती हैं,

दस सालो से जिस जगह में रहता हूँ,

अपने पडोसी को मैं खुद नहीं जानता हूँ.

उसके सुख दुःख में शरीक होने की बात तो दूर,

मैं उसका नाम तक नहीं जान पाया हूँ.

अपना घर और ऑफिस के अलावा,

सामाजिक होने का अर्थ मैं भूल सा गया हूँ.

मुझे भी अब तक समझ नहीं आया ,

की मैं भी ऐसा क्यूँ हो गया हूँ.

कहते हैं, " इन बड़े शहरो के ईट सीमेंट के दीवारों के पीछे ,

बहुत पढ़े लिखे और समझदार लोग रहते हैं."

मगर अब भी मैं ," मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं,"

का अर्थ इस दिल्ली शहर में रोज़ ढूँढता हूँ.

Sunday, April 10, 2011

ये अन्ना हजारे कौन हैं ?



७२ वर्षीय एक जवान ने जब,

इंडिया गेट पर डेरा डाला.

लोगो ने एक दुसरे से पूछा ,

" ये ! अन्ना हजारे कौन हैं?"

जब तक उन्हें पता चलता ,

हुजूम उमड़ पड़ा था,

कोई जाने न जाने उस शख्स का,

मकसद बड़ा नेक था,

तीन दिनों के अन्दर ही,

उसका नाम सबकी जुबान पे चढ़ गया था,

महाराष्ट्र से आये एक फ़कीर ने ,

दिल्ली में सरकार को हिलाया.

किशन बापट बाबुराव हजारे नाम के इस शख्स ने,

६० साल बाद देश को " बापू " के छोटे अवतार से अवगत कराया.

लगे रहो "छोटे गाँधी "

देश तुम्हारे साथ हैं.

Saturday, March 26, 2011

बस यूँ ही ............

ना उम्मीदी के  इस दौर में ,

फिर भी गाहे बगाहे कुछ,

सूरज की किरणे बिखर ही जाती हैं,

जो शायद हमें फिर से कुछ करने की,

प्रेरणा दे जाती हैं.



कभी डूबते सूरज को देख कर एहसास होता हैं,

जैसे ये अपने में समेट कर कितने राज ,

कितनो पलो की सौगात लिए छुप जाता हैं,

शायद उनको अच्छे बुरे में छाटने के लिए ,

एकांत में चला जाता हैं.



अवसाद बुरा नहीं हैं जीवन में,

अगर हम में लड़ने की क्षमता हैं,

जिजीविषा जीवन की यही तो हैं,

की हर हालात में खुद को बुलंद रखना हैं.

Friday, March 18, 2011

हैप्पी होली !

चहुँ और पेड़ो पर फूल खिलने लगे,


धरती करने लगी हैं अपना श्रृंगार,

मौसम ने करवट बदली ,

बहने लगी मस्त बयार.



फागुन का रंग चड़ने लगा सब पर,

रंगों से खेलने को सब हो गए तैयार.

सब राग द्वेष मिटाकर एक दुसरे को गले मिलाने ,

आ गया होली का त्यौहार.



( होली आपके जीवन में खुसियों और आनंद के रंग भरे)

Tuesday, March 15, 2011

हाहाकार.............

चारो तरफ देख हाहाकार ,


कितना हो गया मनुष्य लाचार,

कल तो जो डींगे भरता था,

प्रकति ने एक ही झटके में,

चूर किया उसका अहंकार.



अब देख रहा वो अंजाम,

छेड़ा छेडी जो उसने की थी प्रकति के साथ,

अब उसका परिणाम देख कर,

रूह भी काँप गयी आज.



दूर से अब देख कर विनाश,

सबको आयी उस खुदा की याद.

संतुलन बिगाड़ा तो अब सजा भी तो भुगतने को,

तैयार रह आज के इंसान.



( यह कविता जापान में आये भूकंप के बाद की स्थिति को ध्यान में रखकर लिखी गयी हैं)

Saturday, March 12, 2011

ज़िन्दगी की उलझन ........



जब छोटे थे तो सोचते थे, कब स्कूल जायेंगे,

और हम बस्ता टांग कर शान दिखायेंगे.

स्कूल पहुचे तो लगा ये कहाँ आ गए ?

फिर सोचा कब कोलेज जायंगे और ?

स्कूल के ये रोज़ रोज़ के झंझटो से कब आज़ादी पाएंगे?

स्कूल खत्म हुआ कोलेज पहुचे थोड़ी दिनों में वहा से भी उकता गए.

नौकरी करते लोगो को देख अपने भी अरमान हरे हो गए.

नौकरी लगी, थोड़े दिन अच्छा लगे,

फिर डंडे पड़ने शुरू हुए.

कुछ साल नौकरी करने के बाद एहसास हुआ ,

उफ़ ! ये किस जंगल में फंस गए.

अब कभी सोचते हैं कब नौकरी से छुटकारा मिले,

Monday, March 7, 2011

नारी - महिमा अपरम्पार .........



बेटी बनकर तुने महकाया अपने माँ बाप का आँगन ,

बहन बन तुने भाई को दिया स्नेह का संसार.

पत्नी बन तुने पति के सपनो को दिया एक नया आकार,

माँ बन तुने अपने बच्चो को दिए कितने संस्कार.

हर रूप में तू निराली हैं, तेरा बिना ये संसार ख़ाली हैं.

तू जगत जननी तेरी महिमा अपरम्पार हैं.

Happy Women day- Salute to every woman.

वो बदलेंगे तो हम बदलेंगे.......

वो बदलेंगे तो हम बदलेंगे,


बदलने की ये बयार बदलने का नाम नहीं लेती,

न वो बदलने को तैयार,

हमारी झिझक हमें पीछे खिचती,

शायद इसी कशमकश में,

बदलाव की आंधी कभी नहीं चलती.

हम रोज़ यु ही जीते चलते हैं ,

बुरा होते देख कर भी अपना इससे क्या लेना यार !

आगे बड़ लेते हैं.

जब हम पर बीतती हैं कभी,

तो हम "ज़माना कितना संवेदनहीन हो गया हैं " सोचते हैं.

यक्ष प्रश्न यह है - की बदलाव की आंधी लायेगा कौन,

ताकते रहे यु ही मुहं एक दुसरे का हम,

जमाने बीत जायेंगे.

मन में एक टीस सी लिए मर जायेंगे.

Wednesday, March 2, 2011

खुद से मुकाबला

खुद से मुकाबला कर यहाँ,


तेरे जैसा कोई नहीं.

अपनी सीमायों को लाँघ जरा,

तेरे लिए मुश्किल कुछ भी नहीं.

अपने रिकॉर्ड ही तुझे खुद तोड़ने हैं,

तेरे मुकाबले का को नहीं.

डर को निकाल बाहर ज़माने का,

क्यूंकि तुझे सँभालने की कोई जरुरत नहीं.

लक्ष्य बना इतना ऊंचा की,

जिसे छूने की कुव्वत तुझ मैं हो और किसी में नहीं.

असफलता और निराशा तुझे छूकर निकल जाये,

तू अटल, अडिग, अविचल , अविरल बहता जाये ,

लक्ष्य पूरा होने पर भी तुझे कोई थकन नहीं.

Tuesday, January 11, 2011

नए साल के पहले उदगार ................

हालातो को देख कर दिमाग ने उकसाया ,

अब कविताये लिखने से मन उकता गया हैं.

अब नहीं लिखूंगा क्यूंकि किसी एक विषय पर मन टिकना बंद हो गया हैं.

मगर मेरा कवि मन कहाँ मेरी सुनने वाला हैं,

वो हर हालात पर कविताये करने को तैयार रहता हैं.

सोचता हूँ अब इस साल से यथार्थ कविताये लिखूंगा.

सब्जबाग जो अब तक दिखाता था,

सच के धरातल पर झाँकने की कोशिश करूँगा.

लोगो के मर्म को कुछ बाँटने का जतन करूँगा,

ज़िन्दगी को थोडा आइना दिखाऊंगा.

भटके हुए को थोडा रोशनी दिखाऊंगा,

रमे हुए लोगो को कुछ गुदगुदाने का प्रयास करूँगा.

जो जी रहे हैं सिर्फ अपने लिए,

उन्हें थोडा दुसरो के लिए जीना सिखाऊंगा.

जितना भी बन पड़ेगा,

इस भागमभाग की ज़िन्दगी में थोडा सा ही सही, लोगो को सुकून दिलाऊंगा.