Wednesday, April 27, 2011

असमंजस ..................

छोटा सा टॉप और जींस पहनकर , 
वो बस में सफ़र कर रही थी, 
कही से कुछ न दिख जाये, 
बार बार टॉप और जींस को एडजस्ट कर रही थी, 
फिर अपने आस पास के लोगो की घूरती निगाहों से, 
बचने का प्रयास कर रही थी. 

मैं ये सब माजरा देख रहा था, 
लड़की को फैशन के चक्कर में, 
परेशान होते देख रहा था. 
अब ये दुनिया के साथ चलने की कवायद थी उसकी, 
या यार दोस्तों से पीछे रहने का डर उसे सता रहा था. 
कुछ भी कारण हो वो खुद को बड़ी असहज पा रही थी. 

Sunday, April 17, 2011

अहम ब्रह्म्ष्मी .........

जब भी तू हो उदास, मन भर आये होकर कोई बात.


दुनिया जब बेगानी सी लगने लगे,

अपने से जब थोडा भरोसा डगमगाने लगे,

हर चीज़ जब बुरी लगने लगे, किसी काम में मन न लगे,

तसल्ली से किसी एकांत जगह पर बैठ ,

बस थोडा आँख से आंसू निकाल,

और फिर जब थोडा मन हल्का हो जाए,

तो एक मंत्र रख याद,

दस बार खुद से " अहम ब्रह्म्ष्मी " बोल डाल,

खुद को खुदा की एक सम्पूर्ण रचना मान,

याद कर वो लोग, जो बिना कुछ होते हुए भी हंस कर जी रहें हैं,

याद कर वो लोग, जो तेरे पीछे खड़े हैं.

याद कर अपनी माँ का तेरे लिए वो लाड प्यार,

याद कर पिता का वो डांट में तेरे लिए आशीर्वाद,

तू खुद में पूरा हैं , तुझमे में कोई कमी नहीं हैं,

बस थोडा हालातो का धोखा हैं, और समय नहीं तेरे साथ.

मगर ये भी कितने पल ठहरेगा , तेरे सोचने मात्र से ही काफूर हो जायेगा,

फिर से तू खड़ा होगा, लेकर अपने सपनो को साथ.

चल- चला - चल तेरे आगे सारा नीला आकाश.

Wednesday, April 13, 2011

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं...

किताबो में बहुत पढ़ा की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं,


जब तक अपने छोटे से गाँव में रहा ,

तो यकीनन लगता था की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं,

दुसरे गाँव में भी किसी एक घर में कुछ अच्छा या बुरा होता था,

तो जाने अनजाने खबर हो ही जाती थी,

ख़ुशी की खबर से अच्छा लगता था तो दुःख की खबर में बुरा लगता था.

मगर जब से शहर आया हूँ,

ये उक्ति बेमानी सी लगती हैं,

दस सालो से जिस जगह में रहता हूँ,

अपने पडोसी को मैं खुद नहीं जानता हूँ.

उसके सुख दुःख में शरीक होने की बात तो दूर,

मैं उसका नाम तक नहीं जान पाया हूँ.

अपना घर और ऑफिस के अलावा,

सामाजिक होने का अर्थ मैं भूल सा गया हूँ.

मुझे भी अब तक समझ नहीं आया ,

की मैं भी ऐसा क्यूँ हो गया हूँ.

कहते हैं, " इन बड़े शहरो के ईट सीमेंट के दीवारों के पीछे ,

बहुत पढ़े लिखे और समझदार लोग रहते हैं."

मगर अब भी मैं ," मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं,"

का अर्थ इस दिल्ली शहर में रोज़ ढूँढता हूँ.

Sunday, April 10, 2011

ये अन्ना हजारे कौन हैं ?



७२ वर्षीय एक जवान ने जब,

इंडिया गेट पर डेरा डाला.

लोगो ने एक दुसरे से पूछा ,

" ये ! अन्ना हजारे कौन हैं?"

जब तक उन्हें पता चलता ,

हुजूम उमड़ पड़ा था,

कोई जाने न जाने उस शख्स का,

मकसद बड़ा नेक था,

तीन दिनों के अन्दर ही,

उसका नाम सबकी जुबान पे चढ़ गया था,

महाराष्ट्र से आये एक फ़कीर ने ,

दिल्ली में सरकार को हिलाया.

किशन बापट बाबुराव हजारे नाम के इस शख्स ने,

६० साल बाद देश को " बापू " के छोटे अवतार से अवगत कराया.

लगे रहो "छोटे गाँधी "

देश तुम्हारे साथ हैं.