Wednesday, December 28, 2011

नए साल की सभी को हार्दिक शुभकामनाये

फिर एक नए साल की स्वागत को पलके बिछाए खड़े हम, 
२०११ को अलविदा कहने को कितने उतावले हम, 
कितनी खट्टी मीठी यादे पीछे छोड़ , 
लो आने वाला हैं एक नया साल आपके सामने. 
सपनो को फिर पंख लगे गए, 
नए साल के लिए अरमान फिर हरे हो गए. 
जनवरी से शुरू होता हर साल , दिसंबर में आकर रुक जाता हैं. 
फिर कैलेंडर हमारा नया आ जाता हैं. 
हर गुजरता साल हमारे जीवन का एक कम हो जाता हैं, 
हम अपनी उम्र में एक साल और जोड़कर , 
फिर आगे बढ जाते हैं , 
हर साल हमारा यूँ ही गुजर जाता हैं. 
चलो ! २०११ का अध्याय ख़त्म कर आगे बड़ते हैं, 
२०१२ का तहेदिल से स्वागत करते हैं. 
लगायेंगे हिसाब किताब कभी इन बीते सालो का, 
जब कभी फुर्सत के कुछ पल हमारे पास होंगे, 
अभी तो भागमभाग की इस ज़िन्दगी में, 
बस कैलेंडर को बदल लेते हैं , 
आओ ! फिर से एक नए साल में प्रवेश करते हैं. 

नए साल की सभी को हार्दिक शुभकामनाये ! 

Sunday, December 18, 2011

इतेफाक से मिली ये ज़िन्दगी .........

इतेफाक से मिली ये ज़िन्दगी , 
कही इतेफाक ही बन कर न रह जाये, 
कुछ तो करे ऐसा , 
की हमारा भी नाम हो जाये. 
जीते तो हैं करोडो  दुनिया में, 
चंद नाम ही याद रह जाये. 
अपने लिये ही जीए तो क्या जीए, 
की दो पीदियो के बाद ही अपने हमें कोस जाए, 
लिख इबारत कुछ ऐसी की, 
जैसे पत्थर पर लकीर बन जाये. 
पैसा कमा, ऐश कर- सब कुछ ठीक   हैं, 
ज़माने के लिए क्या कर गया बस यही याद रह जाये. 

Sunday, December 11, 2011

१०० साल की दिल्ली .............


इस शहर में कुछ तो बात हैं, 
हर बेगाना भी इससे प्यार करता हैं, 
छोड़ के जब आया था इस शहर अपने गाँव को, 
वादा किया था जल्दी ही छोड़ दूंगा इस शहर को, 
मगर दिल्ली शहर की बात ही कुछ निराली निकली, 
इससे दस सालो में इतना प्यार हुआ की, 
बीस साल पुराने अपने गाँव शहर की यादे धुंधला गयी, 
कहते हैं आज दिल्ली को राजधानी बने १०० साल हो गए हैं, 
आज के ही दिन १९११ में जोर्जे पंचम की ताजपोशी हुई थी, 
दिल्ली दरबार लगा था दिल्ली में, इसकी शान और बड़ी थी, 
इतिहास को थोडा खंगाला तो दिल्ली को कुछ करीब से जाना, 
कितनी बार उजड़ कर फिर से दिल्ली खडी हुई थी, 
जो भी आया लूट खसोट कर ले गया, 
दिल्ली अपने गम चुपचाप सहती रही, 
हर बार फिर बसी फिर से न ख़त्म होने के लिए, 
यमुना के तीरे तीरे बसी मेरी दिल्ली , 
न जाने कितनी बार रोती बिलखती रही,  
मगर आज गर्व हैं मुझे इस दिल्ली पर, 
इसकी शानो शौकत पर, 
जता दिया दिल्ली ने दुनिया को, 
दिलवालों की हैं ये दिल्ली, आओ तो स्वागत करेंगे 
चले भी जाओगे यहाँ से अगर कभी, 
इसे कभी न भूल पाओगे. 
न जाने कितने सल्तनते देखी, कितने राजाओ की दुन्दुभी सुनी, 
दिल्ली  यु ही चुपचाप चलती रही. 
यमुना के तीरे तीरे अपने को रचते बसते , 
सबको कुछ न कुछ देते हुई, 
दिल्ली अब जाकर कुछ शांत हुई.