Friday, March 30, 2012

कारवां जारी हैं.................


एक दिन खाली हाथ रोते हुए हम धरती पर आये थे, 
न कुछ होश था , न कुछ सोचने समझने की ताकत. 
समय का कारवां चलता रहा ........
हम बचपन से जवानी की दहलीज तक पहुच गए, 
अपने साथ कितने को मिला लिया, 
और फिर हमारा कारवां बनता चला गया , 
हम मंजिल दर मंजिल बड़ते चले गए, 
कुछ नए साथी मिलते रहे और कुछ पुरानो का रास्ता अलग हो गया , 
हमें चलना ही हैं , जडवत नहीं हो सकते. 
ज़िन्दगी के इस सफ़र में हम बड़ते ही रहेंगे . 
कुछ हमने सीखा , कुछ को हमने सिखाया , 
और कारवां यूँ ही गुजरता रहा....
मगर अब भी सफ़र जारी हैं, 
बहुत मंजिले अभी और छूनी हैं, 
क्यूंकि जब तक हैं ये सफ़र यूँ  ही चलता रहेगा, 
कुछ खट्टे कुछ मीट्ठे अनुभवों के गलियारों से गुजरता रहेगा, 
आज हमने इस कारवां की मशाल थामी हैं, 
कल और कोई आएगा , 
क्यूंकि ये कारवां रुक नहीं सकता ,
ये कारवां जारी हैं और यूँ ही जारी रहेगा....................

Thursday, March 22, 2012

मौन ..........


कौन कहता हैं मौन रह कर  समस्याओं से नहीं जूझा जा सकता, 
श्री मनमोहन जी से पूछ लो, 
इतने घोटाले और गठबंधन की सरकार को , 
इतने साल संभाल कर , 
और फिर भी चलते रहना, 
अब इस मौन में शक्ति नहीं है तो और क्या, 
विपक्ष भले ही हड़ताल करे , 
लोग भले ही धरना दे , 
महंगाई से भले ही जान चली जाये , 
कोई फर्क नहीं पड़ता , 
मौन रहकर ही इन सबसे निपटा जा सकता हैं, 
क्यूंकि बोलने वाला हमेशा बडबोला कहलाता हैं . 
चलो ! कुछ तो सीखा मनमोहन जी से , 
मौन में ताकत हैं हम भी आजमाते हैं, 
क्यूँ हम बात बात में भड़क कर , 
अपना ही तबियत खराब करते हैं. 

Wednesday, March 21, 2012

समय का चक्र ....


हर सुबह इठला के कहती हैं
लो, मैं फिर गयी तुम्हारे लिए
लेकर एक नयी दिन की सौगात
अब ये तुम पर हैं
कैसे करोगे आज का तुम इस्तेमाल
दोपहर कहती हैं अभी भी वक़्त हैं
सूरज अभी उफान पर हैं
दिन की जवानी हैं
उठा ले कदम करने अपने सपने साकार
शाम आते आते सबक दे जाती हैं
आज का दिन गया अब
कल का फिर करना इंतज़ार
रात अपनी कालिमा ओडे
हमें करा  जाता हैं याद हमारी औकात.  
यु ही हर रोज़ हमें ज़िन्दगी का एक सन्देश दे जाता हैं
हम बड़ते चलते हैं
दिन , महीने , साल और दशक
यू ही बनते चले जाते हैं
दिन अगर अच्छा बीता तो हम खुश हो जाते हैं, 
दिन अगर बुरा रहा तो चलो कट गया कह कर सो जाते हैं. 
समय का चक्र यूँ ही चलता रहता हैं, 
फिर एक दिन हम अपनी खाते की ज़िन्दगी काट के, 
अनजान सफ़र की तरफ निकल जाते हैं. 


Sunday, March 4, 2012

मिलकर जहाँ बनाना हैं ..



एक एक से अनेक बने , 
अनेक से बने एक कारवां, 
कारवां से बने एक समाज , 
समाज से बने एक देश, 
तो आओ की अब एक से अनेक बने, 
कारवां को गुंजायमान करे, 
समाज को फिर जीवन मूल्य दे ,
देश को फिर से शशक्त करे. 
फैला हैं जो अत्याचार , 
उसका विरोध करे , 
अपनी आने वाली पीढ़ी  को, 
आओ की एक उम्मीद  दे.