Monday, September 24, 2012

ज़िन्दगी और मैं ....

सन्डे को थोडा फुर्सत थी, तो थोडा अलसा रहा था. 
पता नहीं कहाँ से ये ख्याल आया , 
जैसे मेरी ज़िन्दगी मेरे सामने आ गयी हो , 
और पूछ रही हो ," बता, मेरा हिसाब किताब ,
इतने साल जो तुने मेरे गवां दिए हैं , 
क्या क्या किया बता तू आज." 
शरीर में सिहरन सी मच गयी , 
और बोला, " सन्डे हैं आज , 
थोडा सुस्ता लूं मैं , 
कल करेंगे बात " 
ज़िन्दगी बोली , " बाकी दिन तो बहुत बहाने है तेरे पास, 
कभी इसका टेंसन और कभी गिनाएगा और बहुत सारे कारण, 
फिर कह देगा बहुत सारे काम हैं मेरे पास आज " 
मैं सन्डे को जाया नहीं करना चाहता था, और मुझे लगा आज तो छोड़ेंगी नहीं , 
और उपर  से हकीकत तो ये , " उसको बताने के लिए कुछ नहीं हैं मेरे पास" 
आधी उम्र तो काट दी हैं मैंने इसकी , अब आधी के लिए भी कोई ऐसा योजना नहीं हैं मेरे पास. 
सोचा इससे कट ही लेता हूँ ,  आवाज लगायी अपनी बिटिया को . 
और उसके साथ यूँ ही खेलने लग गया. 
ज़िन्दगी बेचारी मुझे घूरते हुए " फिर आउंगी " कहते हुए ओझल हो गयी. 

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