Friday, October 26, 2012

राम ने रावण को क्यों मारा .......

मेरी चार साल की बिटिया दशहरे के दिन रावण को जलता देख  कहती हैं ,
" पापा , आपको पता हैं हैं राम जी ने रावण को क्यों मारा ?"
मैंने कहा , " नहीं बेटा, आप बताओ - राम जी ने रावण को क्यों मारा ?" 
उसने बड़ी मासूमियत से उतर दिया , " रावण गन्दा बच्चा था, उसने राम जी को खूब तंग किया था. 
इसलिए राम जी ने बो और एरो से उसको मार दिया.  
जो भी किसी को तंग करेगा , राम जी इसको मार देते हैं." 
मैं अवाक् था, मेरी चार साल की बेटी को पता था राम और रावण में क्या फर्क था, 
पूछने पर उसने बताया उसको स्कूल में उसकी मैडम ने बताया था. 
मैं खुश था उसको अच्छे बुरे की थोडा बहुत पहचान हो गयी हैं. 
मगर मैं सोच में पढ़ गया , 
आज के समय में इतने राम कहाँ से आयेंगे और कहाँ कहाँ जायेंगे ,
हर तरफ तो रावण ही रावण हैं , 
अपने बो और एरो से वो क्या कर पाएंगे , 
रावनो ने बहुत तरक्की कर ली हैं और जरुरत से ज्यादा हाई टेक हो गए हैं. 
राम को पता भी ने लगने देंगे और रावण उनकी नाक के नीचे अपना काम कर जायेंगे. 
बिटिया मेरी अभी असलियत की ज़िन्दगी से कोसो दूर हैं , 
उसको हर बुरा काम करने वाला रावण नजर आता हैं , और अच्छा काम करने वाला राम. 
भगवान् उसे यही सोच दे की वो ये भेद हमेशा कर सके और रावनो से हमेशा बची रह सके.   

Tuesday, October 16, 2012

क्या लिखूं .....कब लिखूं ........

हर रोज़ सोचता हूँ आज कुछ न कुछ जरुर लिखूंगा, 
मगर सोचता हूँ टाइम कहाँ हैं कुछ सोचने का , 
सोचूंगा नहीं तो क्या लिखूंगा ? 
हफ्ते के सात दिन , छ दिन ऑफिस में व्यस्त , 
रविवार को घर वालो को टाइम देने का वक्त. 
ऑफिस में किसको फुर्सत हैं जी हजूरी करने से, 
शाम को बीवी बच्चो की शिकायतों से पस्त. 
सोचा आज ऑफिस आते जाते कुछ सोचूंगा , 
क्यूंकि यही वक्त हैं मेरे पास दिमाग दौडाने का , 
मगर मेट्रो में जैसे ही कुछ सोचने लगता हूँ, 
अगला स्टेशन आ जाता हैं , 
कुछ अन्दर चडते हैं और कुछ बाहर का रास्ता पकड़ते हैं , 
अन्दर और बाहर होने वाले लोग आपको सरका जाते हैं, 
विचारो का एक फ्लो जो थोडा बनता हैं , 
उसको बिगाड़ जाते हैं. 
हर रोज़ यही चलता रहता हैं , 
कविताये जन्म लेने से पहले ही दम तोड़ देती हैं, 
ज़िन्दगी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से कुछ ऊपर सोचने ही नहीं देती हैं. 
चलो ! इस उम्मीद में हैं एक दिन आएगा जब हम भी फुर्सत में होंगे, 
दूर किसी पहाड़ो में झरने के नीचे एकांत में कविताये लिखेंगे , 
तब तक... गाहे बगाहे कुछ होगा तो जल्दी में लिख डालेंगे , 
तुकबंदी न भी बन पड़े , भावनाओ के शब्दों का जामा पहनते रहेंगे.