Wednesday, August 22, 2012

यादो के गलियारों में गोते .......

कभी यूँ ही यादो के गलियारों में घूमना अच्छा लगता हैं, 
वो छोटी छोटी बाते यादे करना अच्छा लगता हैं, 
वो बचपन के अल्हड और मौजमस्ती के दिन याद करना ,
दिमाग को कितना ताजा कर जाता हैं, 
वो स्लेट पर कलम से अ , आ सीखना , 
वो पहाड़े रट रट के सुनाना, गलती होने पर मास्टर जी के बेत खाना, 
वो अकेला स्कूल जाना और आना , 
आते समय दोस्तों से किसी बात पर शर्त लगा कर झगड़ना , 
कभी भी स्कूल बंक करके दुसरे दिन उलजलूल बहाने बनाना , 
दिन भर क्रिकेट खेलने के चक्कर में खाना पीना सब भूलना, 
रात को माता जी से फिर लेक्चर सुनना , 
वो टीचरों का अलग अलग नामकरण करना ,
बरसातो में खुद को भिगोना , 
वो नए नए सपने देखना , दुनिया को अपनी मुट्ठी में समझना , 
पापा मम्मी से किसी न किसी बहाने से पॉकेट मनी मांगना , 
कोई सामान मंगाए तो उसमे से चुंगी मारना, 
सच में यादो के पिटारे में कितना कुछ भरा पड़ा है हमारे , 
कभी फुर्सत में सोच के देखना , 
चेहरे पर एक लालिमा से आएगी और दिल बड़ा हल्का से लगेगा , 
इस भागम भाग ज़िन्दगी में "वो पल" ठंडी हवा का झोंका सा अहसास हैं, 
आप तरोताजा हो जायेंगे और यादो की गठरी भी फिर से रवां हो जाएगी .  

Monday, August 13, 2012

नमन शहीदों ! हम गुनाहगार हैं ...........

वो लोग कितने गजब थे, 
हमारे आज के लिए जो शहीद हुए थे, 
उन्होंने अपने आज को न देखा, 
आने वाला कल अच्छा हो , कुर्बान हुए थे. 
आजादी की खातिर जिन्होंने , 
तन मन धन न्योछावर कर दिया था, 
आजाद हवा में सांस ले सके हमारे आने वाले बच्चे, 
सब कुछ झोंक दिया था. 
बदले में हमने उनके सपनो के साथ क्या किया ? 
आजाद हम उनकी कुर्बानियों से हुए , 
हम उसे हमारा हक़ मान लिया, 
उनके सपनो के भारत को हमने क्या से क्या बना दिया?
सत्ता कहने को हमारे हाथ आ गयी मगर, 
हमने ही आजादी का गला घोंट दिया. 
चंद लोगो के हाथो में सियासत चली गयी , 
असली जनता - फिर भी भूखी प्यासी रह गयी. 
कुर्बानियों का हमने क्या सिला दिया, 
अपने देश का पैसा कुछ लोगो ने स्विस बैंक में जमा करा लिया. 
किसान ख़ुदकुशी करते रहे और सूदखोरों का घर मालामाल हुआ. 
तरक्की बहुत की हमने , आम आदमी महंगाई से कभी उभर नहीं पाया. 
रोटी कपडा और मकान के चक्कर में , उसको कभी आजादी का मतलब समझ नहीं आया. 
उसके लिए तो शासको का सिर्फ रंग बदला, 
पहले गोरो का राज था, अब उनकी चमड़ी का रंग थोडा काला हुआ. 
पहले विदेशी का हवाला देते थे, अब अपने बीच से ही लूटेरो का राज हुआ. 
क्या सोचते होंगे वो शहीद अब ऊपर आसमान से , 
उनके बलिदान का अर्थ जाया हो गया. 
तुम्हे नमन शहीदों , शायद हम आजादी का अर्थ कुछ और समझ बैठे हैं.
लम्बे अरसे की गुलाम का दंश शायद हम भूल चुके हैं. 
जो शायद आपने सहा , वो हम अनुमान भी न लगा पाएंगे , 
अपने भीतर ही पैदा हुए इन अंग्रेजो को हम ही दूर भगायेंगे. 

( १५ अगस्त की पूर्व संध्या पर शहीदों को श्रदांजली )