Friday, July 19, 2013

जीवन कारवाँ

कभी कभार जब अपने जीवन  कारवाँ को पीछे  पलट के  देखता हूँ,
तो अपने पीछे  अनगिनत लोगो का हुजूम  पाता हूँ , 
वो पापा का किसी बात पर डाँटना और अगले  ही पल  दुलारना , 
वो मम्मी का हर बात पर  फिक्र करना , 
वो बचपन का मेरा दोस्त जिसके कंधो पर मैं हाथ डालकर  स्कूल जाता  था
वो मेरे  मास्टर जी जिनकी बेतों की मार खाकर मै उनको हिटलर  कहता था
वो दादी माँ जिनको मैं शैतानी का बाप लगता था
वो  दादा जी जिनके कंधो पर बैठकर  उनके बाल खीचता था
वो स्कूल के प्रिंसिपल जिनके जैसा मै बनना चाहता था
वो मेरा भाई जिसे अपने से ज्यादा  भरोसा मुझ पर था
वो मेरी  बहन जिसे  दुनिया में मुझसे  बेहतर कोई  नहीं दिखता था
वो मेरे कॉलेज के दोस्त जिनके साथ भविष्य की हर रोज़ नयी कल्पना करता था, 
वो मेरी  बीवी जिसने  मुझे  अपना जीवन समर्पित किया , 
वो मेरी बेटी जिसने मुझे फिर से  मुझे  बचपन   को याद दिलाया ,
वो मेरे  ऑफिस के दोस्त  जिन्होंने मुझे  काम करना सिखाया , 
और भी न जाने कितने लोगों ने मुझे कुछ न कुछ सिखाया, 
मैंने तो  शायद ही  इनके  लिए कुछ किया हो , मगर इन सब ने मुझे बनाया,
अपने जीवन के कारवां को  कभी कभी याद  कीजिये , 
बढ़ा  सुकून मिलता हैं और " मैं , सिर्फ मैं " का भ्रम दूर  होता हैं , 
अभी तो कारवां ने कुछ ही मीलो का सफ़र तय किया हैं , 
बहुत दूर और जाना हैं , 
न जाने कितने लोग और जुडेगे मेरे जीवन कारवां में , 
क्यूंकि मेरे जीवन का कारवां जारी हैं  ........... 

Wednesday, July 17, 2013

कलम और शब्दों की जंग

आजकल चीजो और हालातो को देख परख रहा हूँ 
की किसी विषय पर कुछ पंक्तिया लिखू , 
विषयो का भटकाव  इतना ज्यादा हो गया हैं शायद , 
या मै ही एक विषय चुनने में असमर्थ हो रहा हूँ,
जिधर नजर दौड़ाता हूँ , विषय बहुत मिल जाते हैं , 
दो चार शब्दों को पिरोने का प्रयास भी करता हूँ , 
मगर चंद पंक्तियों के बाद दिमाग बोझिल सा हो जाता हैं , 
सोचता हैं हजारो पंक्तियों के विषय को तू , क्यूँ कुछ पंक्तियों में कैद करना चाहता हैं , 
बस असमंजस और कशमकश जारी हैं , 
मेरे और विषयो के बीच , 
यकीन हैं किसी न किसी दिन फिर से लेकर बैठूँगा , 
अपने दिमाग और कलम के बीच की जंग को , 
मै ही शांत करूँगा ............और तब शायद कुछ सार्थक लिखूंगा , 
अपने दिमाग और विषयो की अभिव्यक्ति को अपने शब्दों का जामा पहनाऊंगा ......