Monday, December 29, 2014

अलविदा २०१४ .................................. सुस्वागत २०१५



२०१४ कह रहा हैं ," चलो दोस्तों - अपना वक्त पूरा हुआ ,
जैसा भी रहा आपका और मेरा साथ - गुजर गया ,

आप याद रखना चाहोगे मुझे या नहीं , मैंने आपका भरपूर साथ दिया,
अपने में समेटे ढेरो यादें , अब मेरा वक्त पूरा हुआ !

कुछ गलत हुआ हो आपके साथ तो मुझे माफ़ कर देना ,
अगर आपकी खुशनुमा यादो में अगर मैं शरीक रहा तो याद रखना ,

अब मैं कभी नहीं आऊँगा बस आपकी यादोँ में कहीं बस जाऊंगा ,
फाड़ना मत मुझे अपनी ज़िन्दगी की किताब से मेरा अस्तित्व मिट जायेगा ,

आपके सपने पूरे हो और आप और अधिक खुश रहे ,
ज़िन्दगी आपकी और खुशहाल और आबाद रहे ,

मैं तहेदिल से २०१५ का स्वागत करता हूँ ,
अब आपके सपने और उम्मीदे इसके हवाले करता हूँ ,

खूब वक्त देना इन्हे , सपनो को परवाज लगने देना ,
कही थोड़ा बहुत वक्त को थामना पड़े भी तो मत घबराना ,

घुल मिल जाना इतना की इनके सपनो में अपने को रमा देना ,
इनके दुःख को अपना दुःख और सुख को अपना समझना ,

हम तो समय के काल चक्र से बंधे हैं मगर ,
इनकी यादो के सुनहरे कारवां में अपना मुकाम बना जाना।"  

Wednesday, October 15, 2014

जागते रहो और जगाते रहो ………



जागते रहो और जगाते रहो  ,
वक्त के साथ कदम मिलाते रहो ,

तरकश के तीरो को अपने मांजते रहो ,
खुद को समय के अनुरूप ढालते चलो ,

जुटे रहो ज़िन्दगी को बेहतर से बेहतरीन बनाने के लिए ,
कसर कोई छोडो मत अपने सपने पूरे करने के लिए ,

ज़िन्दगी ये नियामत हैं उस खुदा की ,
मायने इसे देते रहो ,

आये कोई अड़चन तो उसे भी हँसते हुए सहो ,
खुद को हर रोज़ तरशाते चलो ,

अवसर दिया हैं ईश्वर ने एक हमें जो ,
इसको सार्थक करते चलो ,

जूनून और ज़िद करो की ज़िन्दगी सुधरनी चाहिए ,
अपने सपने तो पूरे करो और दूसरो की भी मदद करते चलो,

सीखते रहो और सिखाते रहो ,
अपना कारवां-ए -ज़िन्दगी चलाते रहो,

बहुत मिलेंगे रोकने टोकने वाले मदमस्त धुन में चलते रहो ,
खुशियाँ बाँटते चलो और किसी का गम साझा करो,

जागते रहो और जगाते रहो।  

Thursday, September 18, 2014

जीवन एक काव्य.........

कुछ अक्षरो को पिरोयो तो वो शब्द बन जाते हैं ,
कुछ शब्दों को अर्थपूर्ण रखो  तो वो पंक्ति बन जाते  हैं ,
कुछ पंकितयो को भावनाये दे कर सजाओ तो वह कविता बन जाती  हैं ,
कई कविताओ को रचो तो वह काव्य बन जाता हैं।

इसी तरह से जीवन एक  काव्य ही  तो हैं ,
हर पल यहाँ अक्षर के मानिंद ही तो हैं ,
हर घंटा एक शब्द और हर पहर एक पंक्ति ही तो हैं ,
हर दिन एक कविता और ज़िन्दगी भी कई कविताओ से भरा काव्य ही तो हैं !

हर एक का अपना जीवन और हर एक का अपना जीवन काव्य ,
कुछ खट्टी , कुछ मीठी , कुछ खुशियो भरी कविताये और कुछ में निराशा के बादलो की पंक्तियाँ ,
यूँ ही जाने अनजाने ये पल शब्दों में ढल कर पंकितया बनते  जाते हैं ,
पंकितयां फिर कविताओ में ढल काव्य का रूप लेती जाती हैं !

हर रोज़ एक नया पन्ना और एक नयी कविता रचते चले जाते हैं ,
और हम अपने जीवन काव्य में वो नया पन्ना जोड़ते चले जाते हैं ,
सिलसिला ये हर पल , हर पहर , हर दिन चलता रहता हैं ,
हम जीवन का एक एक पल जीते चले जाते है और जीवन काव्य खुद- ब- खुद रचते चले जाते हैं !

लिखो अपना जीवन काव्य करीने से , हर पल को एक नया अर्थ देकर सजाओ ,
हर पहर को एक नयी भावना से जीवित करो और हर दिन को एक नयी कविता रचो ,
जीवन काव्य हमारा हैं और इसको कुछ मायने दो ,
हर कविता में जान डाल दो वर्ना जीवन काव्य अधूरा हैं ! 

Monday, June 30, 2014

मेरी दुविधा .............

बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं , ऐसा नहीं की कुछ सोचा नहीं  !
सोचने का क्रम तो हर वक्त चलता रहता हैं ,
ऐसा भी नहीं की कोई विषय नहीं मिला ,
विषय भी बहुत मिले और उन पर बहुत सोचा भी ,

मगर जब भी भावनाओ को उकेरना की बात आयी ,
कलम थोड़ी दूर जाकर रुक सी गयी !
लिखने को बहुत था मगर दिमाग में ठिठुरन सी  लगी ,

राजनीती अब अवसरवादिता और आरोप -प्रत्यारोप तक सिमट कर रह गयी ,
सामाजिकता अब बस कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन के स्क्रीन में चिपक गयी ,
नैतिक मूल्य अब किताबो के पन्नो में ही रह गए हैं ,
प्यार -मोहब्बत - दोस्ती अब पैसे के तराज़ू में तुलने  लगे हैं ,
कुछ अपना अनुभव लिखो तो आपसे समझदार बहुत हो गए हैं ,
कल्पना शक्ति  रोज मर्रा की चीजो को सुलझाते सुलझाते दम तोड़ गयी हैं।

मगर अब भी उम्मीद नहीं खोयी हैं , हर रोज़ नए विषयो को फिर से सोचता हूँ
सोचता हूँ कुछ तो मिलेगा लिखने को, अपनी भावनाओ को शब्दों में पिरोने का,
इसी उम्मीद में हर समय कागज और कलम साथ रखता हूँ ,
क्या पता कहाँ और कैसे कोई विषय कुछ आकार  ले ले ,
तब तक मैं भी थोड़ा बहुत अपनी रोज़मर्रा की चीजो का जुगाड़ कर लू.

( पढ़ते रहिये क्यूंकि ये कारवां जारी हैं ………………………) 

Tuesday, June 10, 2014

हर बार....

हर बार गिर कर फिर संभलता हूँ मैं  ,
हर गम को भुला कर हँसता हूँ मैं ,

क्यूंकि गिर कर संभला नहीं तो फिर कैसे उठूंगा मैं ,
गम को दिल से लगा कर रखूँगा तो खुशियाँ कैसे मनाऊंगा मैं ,

हार- जीत , ख़ुशी- गम , मिलन - बिछुड़न ये सब जिंदगी के हिस्से ही  हैं ,
ये  ताउम्र चलते रहेंगे ,
फिर सोच सोच कर वक्त जाया क्यूँ करू मैं ,

मैं अपना काम करता चलता हूँ ,
परिणाम नियति पर छोड़ते चलता हूँ ,

ज़िन्दगी के इस कारवां को अपने ,
बेहतर,  और बेहतर करते चलता हूँ. 

Friday, May 2, 2014

ये चुनाव हैं ………………



हर नेता सुर्ख़ियो में रहना चाहता हैं ,
बाते हर तरह की करता हैं ,

पांच साल तो लूटने में लग जाते हैं ,
चुनावो की बेला आते ही फिर ही घर से बाहर आते हैं ,

करके उलजलूल बयानबाजी ,
एक दूसरे को नीचा दिखाते हैं ,

देश की किसी को परवाह नहीं,
बस लाइमलाइट में रहना चाहते हैं.

नेताओ की मेंढ़क दौर ज़ारी हैं ,
कोई आगे न जा पाये टांग खिचाई जारी हैं।

Tuesday, March 25, 2014

चुनावी दंगल ....

बिगुल फूंक गया देखो फिर से , आयी चुनावी बेला !
नेता जी पांच साल में फिर से जागे और बुलाया चेलो का रेला  !!

फिर से पब्लिक के पास जाना हैं , कुछ तो मुद्दा बताओ !
काम तो कुछ किया नहीं हैं , कोई तो मुद्दा सुलगाओ !!

हमने तो अपनी जेबें भर ली मगर कुछ और कसर रह गयी हैं बाकि !
अभी तो दो पुस्तो के लिए जोड़ लिया हैं , पांच पुस्ते रह गयी हैं बाकी !!

पांच साल में एक बार भी मुड़कर देखा नहीं अपने वोटर को !
वो बेचारा रो रो कर कोस रहा था अपने फैसले को !!

नेता जी सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहन हाथ जोड़े पहुँचे पब्लिक पास !
बटवाएं थे पर्चे पहले ही क्या क्या किया उन्होंने काम इन पांच साल !!

लेकिन पब्लिक इस बार समझदार निकली !
नेता जी कि पार्टियो कि खूब मौज उड़ाई !!

कही कही पर कालिख पोती और कही कही खूब डंडे बरसायी !
और कहा ," तुम चुनावी मौसम के हो मेंडक , अब तुम्हे पब्लिक कि याद आयी , लोकतंत्र कि तुमने नेताजी , कैसी धज्जियाँ उड़ाई " !!

संसद में जहाँ जनहित का कानून बनना था , तुमने कुर्सी मेज चलाये !
अपनी तनख्वाह बढ़ाने का विधेयक चंद मिनटो में पास किया ,जनता के हितो के कानून में बार बार रोड़े लगाये  !

अब हम तुम्हे लटकायेंगे और तुम्हारे पाँच सालो के कर्मो का परिणाम सुनाएंगे !
जनता को तुमने अब तक अपने हाथो कि कठपुतली समझा था , अब जनता दरबार में तुम्हारा फैसला सुनायेंगे !!

मत भूलो नेताजी , तुम्हारे लिए भले ही पांच साल का वक्त बहुत कम होता हैं !
जनता का हर रोज़ तिल तिल जीना - मरना होता हैं !!

सुधर जाओ अब भी वक्त हैं - जनता का असली गुस्सा अभी बाकी हैं !
एक बार फिर मौका दे रही हैं - नहीं तो ज़लज़ला अभी बाकी हैं !!

जनता के चुने हुए नुमाइंदे हो , उनके हित की भी सोचो !
लोकतंत्र में खुद को भगवान तो न समझो !!

जिस दिन जनता का पारा थोडा सिर से ऊपर चला जायेगा !
दौड़ा दौड़ा कर मारेगी फिर तू कहाँ जायेगा !!

Tuesday, March 18, 2014

हिसाब किताब ................

जीवन कि इस भागमभाग  में कुछ तो वक्त निकालना पड़ेगा,
कुछ देर कही थोडा बैठकर ,
कुछ तो हिसाब किताब लगाना होगा।

क्या खोया क्या पाया का हिसाब किताब भले ही न लगाये ,
मगर अब तक जो रास्ता तय किया हैं ,
उसको एक बार पलट कर देखना होगा,
आगे फिर कैसे बढ़ना हैं ? इसको तो तय करना  होगा ,

चंद फुर्सत के क्षण अपने को देने होंगे ,
अपने तरकश के तीरो को फिर से तराशना होगा ,
अपने अंदर के जूनून को फिर से जगाना होगा ,
सफ़र लम्बा हैं ज़िन्दगी का ,
अपने पसीने को थोडा सा तो  सुखाना होगा ,
अपने को जो भूल गया हूँ , उसे याद तो दिलाना होगा।

बेशक ! आगे बढ़ने कि ख्वाइश हैं तेरी  ,
उसमे किसी को गुरेज क्यूँ होगा ,
तू अपनी ज़िन्दगी का खुद मालिक हैं ,
किसी और क्या क्यों इस पर अख्तियार होगा ,

मगर  ………………
जीवन कि इस भागमभाग  में कुछ तो वक्त निकालना पड़ेगा,
कुछ देर कही थोडा बैठकर ,
कुछ तो हिसाब किताब लगाना होगा।  

Friday, February 21, 2014

चंद पंक्तियाँ

सपने देखते रहिये क्यूंकि यही आपको आगे ले जायेंगे,
थक भी जाओगे कभी फिर से ऊर्जा भरेंगे ,

लगे रहिये ज़िन्दगी को और बेहतर बनाने कि ओर  ,
मगर कदम जमीन पर ही रखिये ,

आसमान भले ही विशाल दिखता हो मगर,
अपना आसमां खुद ही बनाइये ,

खोने  के लिए कुछ भी नहीं हैं हमारे पास ,
आगे बढ़ते रहने कि ललक मन में बनाइये रखिये ,

सफ़र में थोड़े रोड़े आ भी गए तो क्या हुआ ,
आगे सुहाना सफ़र हैं इसे याद रखिये,

खुद को कमजोर या अकेला कभी मत समझिये ,
वो खुद हर वक्त साथ हैं याद रखिये ,

कभी अगर थोडा बुरा होता हैं तो आँसू छलकाने से भी मत डरिये ,
और अगर अच्छा हो तो अपने को शाबाशी भी देते रहिये ,

जीवन ये खुदा कि नियामत हैं ,
हर समय इसे याद रखिये।