Tuesday, March 25, 2014

चुनावी दंगल ....

बिगुल फूंक गया देखो फिर से , आयी चुनावी बेला !
नेता जी पांच साल में फिर से जागे और बुलाया चेलो का रेला  !!

फिर से पब्लिक के पास जाना हैं , कुछ तो मुद्दा बताओ !
काम तो कुछ किया नहीं हैं , कोई तो मुद्दा सुलगाओ !!

हमने तो अपनी जेबें भर ली मगर कुछ और कसर रह गयी हैं बाकि !
अभी तो दो पुस्तो के लिए जोड़ लिया हैं , पांच पुस्ते रह गयी हैं बाकी !!

पांच साल में एक बार भी मुड़कर देखा नहीं अपने वोटर को !
वो बेचारा रो रो कर कोस रहा था अपने फैसले को !!

नेता जी सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहन हाथ जोड़े पहुँचे पब्लिक पास !
बटवाएं थे पर्चे पहले ही क्या क्या किया उन्होंने काम इन पांच साल !!

लेकिन पब्लिक इस बार समझदार निकली !
नेता जी कि पार्टियो कि खूब मौज उड़ाई !!

कही कही पर कालिख पोती और कही कही खूब डंडे बरसायी !
और कहा ," तुम चुनावी मौसम के हो मेंडक , अब तुम्हे पब्लिक कि याद आयी , लोकतंत्र कि तुमने नेताजी , कैसी धज्जियाँ उड़ाई " !!

संसद में जहाँ जनहित का कानून बनना था , तुमने कुर्सी मेज चलाये !
अपनी तनख्वाह बढ़ाने का विधेयक चंद मिनटो में पास किया ,जनता के हितो के कानून में बार बार रोड़े लगाये  !

अब हम तुम्हे लटकायेंगे और तुम्हारे पाँच सालो के कर्मो का परिणाम सुनाएंगे !
जनता को तुमने अब तक अपने हाथो कि कठपुतली समझा था , अब जनता दरबार में तुम्हारा फैसला सुनायेंगे !!

मत भूलो नेताजी , तुम्हारे लिए भले ही पांच साल का वक्त बहुत कम होता हैं !
जनता का हर रोज़ तिल तिल जीना - मरना होता हैं !!

सुधर जाओ अब भी वक्त हैं - जनता का असली गुस्सा अभी बाकी हैं !
एक बार फिर मौका दे रही हैं - नहीं तो ज़लज़ला अभी बाकी हैं !!

जनता के चुने हुए नुमाइंदे हो , उनके हित की भी सोचो !
लोकतंत्र में खुद को भगवान तो न समझो !!

जिस दिन जनता का पारा थोडा सिर से ऊपर चला जायेगा !
दौड़ा दौड़ा कर मारेगी फिर तू कहाँ जायेगा !!

Tuesday, March 18, 2014

हिसाब किताब ................

जीवन कि इस भागमभाग  में कुछ तो वक्त निकालना पड़ेगा,
कुछ देर कही थोडा बैठकर ,
कुछ तो हिसाब किताब लगाना होगा।

क्या खोया क्या पाया का हिसाब किताब भले ही न लगाये ,
मगर अब तक जो रास्ता तय किया हैं ,
उसको एक बार पलट कर देखना होगा,
आगे फिर कैसे बढ़ना हैं ? इसको तो तय करना  होगा ,

चंद फुर्सत के क्षण अपने को देने होंगे ,
अपने तरकश के तीरो को फिर से तराशना होगा ,
अपने अंदर के जूनून को फिर से जगाना होगा ,
सफ़र लम्बा हैं ज़िन्दगी का ,
अपने पसीने को थोडा सा तो  सुखाना होगा ,
अपने को जो भूल गया हूँ , उसे याद तो दिलाना होगा।

बेशक ! आगे बढ़ने कि ख्वाइश हैं तेरी  ,
उसमे किसी को गुरेज क्यूँ होगा ,
तू अपनी ज़िन्दगी का खुद मालिक हैं ,
किसी और क्या क्यों इस पर अख्तियार होगा ,

मगर  ………………
जीवन कि इस भागमभाग  में कुछ तो वक्त निकालना पड़ेगा,
कुछ देर कही थोडा बैठकर ,
कुछ तो हिसाब किताब लगाना होगा।