Thursday, September 18, 2014

जीवन एक काव्य.........

कुछ अक्षरो को पिरोयो तो वो शब्द बन जाते हैं ,
कुछ शब्दों को अर्थपूर्ण रखो  तो वो पंक्ति बन जाते  हैं ,
कुछ पंकितयो को भावनाये दे कर सजाओ तो वह कविता बन जाती  हैं ,
कई कविताओ को रचो तो वह काव्य बन जाता हैं।

इसी तरह से जीवन एक  काव्य ही  तो हैं ,
हर पल यहाँ अक्षर के मानिंद ही तो हैं ,
हर घंटा एक शब्द और हर पहर एक पंक्ति ही तो हैं ,
हर दिन एक कविता और ज़िन्दगी भी कई कविताओ से भरा काव्य ही तो हैं !

हर एक का अपना जीवन और हर एक का अपना जीवन काव्य ,
कुछ खट्टी , कुछ मीठी , कुछ खुशियो भरी कविताये और कुछ में निराशा के बादलो की पंक्तियाँ ,
यूँ ही जाने अनजाने ये पल शब्दों में ढल कर पंकितया बनते  जाते हैं ,
पंकितयां फिर कविताओ में ढल काव्य का रूप लेती जाती हैं !

हर रोज़ एक नया पन्ना और एक नयी कविता रचते चले जाते हैं ,
और हम अपने जीवन काव्य में वो नया पन्ना जोड़ते चले जाते हैं ,
सिलसिला ये हर पल , हर पहर , हर दिन चलता रहता हैं ,
हम जीवन का एक एक पल जीते चले जाते है और जीवन काव्य खुद- ब- खुद रचते चले जाते हैं !

लिखो अपना जीवन काव्य करीने से , हर पल को एक नया अर्थ देकर सजाओ ,
हर पहर को एक नयी भावना से जीवित करो और हर दिन को एक नयी कविता रचो ,
जीवन काव्य हमारा हैं और इसको कुछ मायने दो ,
हर कविता में जान डाल दो वर्ना जीवन काव्य अधूरा हैं ! 

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