Friday, February 20, 2015

ठूंठ और पौधा

किसी बगीचे में एक ठूंठ खड़ा था , उसी के बगल में एक नन्हा पौधा पनप रहा था !
नन्हा पौधा उस ठूंठ से हर रोज़ उलझता था , उसे हर रोज हट जाने को कहता था !!

वो ठूंठ उसकी शिकायत को बड़े ध्यान से सुनता और मुस्कराता था !
एक दिन एक जोर का तूफ़ान आया और नन्हा पौधा बड़ी मुश्किल से अपने को संभाल पाया था !!

फिर एक दिन जोरो की बारिश हुई और वो नन्हा पौधा ठूंठ से लिपट कर अपने को उखड़ने से बचा पाया था !
उसकी अधमरी जड़ो के सहारे वो अपना वजूद संभाल पाया था !!

मगर तब भी वो हर रोज़ उस ठूंठ को कोसता था क्यूंकि वह जल्दी से बढ़ जाना चाहता था !
मगर वो ठूंठ उसकी शिकायतों को यूँ ही हंसकर टाल देता था !!

फिर एक दिन वो घडी ही गयी और एक लकड़हारा उस ठूंठ को जड़ से काट कर ले गया !
नन्हा पौधा मन ही मन बड़ा खुश हो गया !!

फिर एक दिन तूफ़ान आया , अब नन्हा पौधा सहम सा गया था !
तूफ़ान ने उसकी नन्ही टहनियों को बड़े जोर से हिलाया था , अपनी जड़ो को उखड़ने से बड़ी मुश्किल से बचा पाया था !!

तेज बारिश ने उसकी जड़ो को बहुत उखाड़ा था और तेज धूप ने बहुत झुलसाया था !
कठोर ठण्ड ने उसको कई बार सताया था !!

अब उसे उस ठूंठ की बहुत याद रही थी कैसे वो उसको इन सब चीज़ो को अपने में झेलकर बचाता था !
अपने साये में उसको धूप से , जड़ो को अपनी लिपटा कर उखड़ने  से बचाता  था !!

उसे शायद इन सब चीजो का तजुर्बा था इसलिए वो  को हंसकर टाल। 
वो मुझे अपने बच्चे की तरह पाल रहा था और मैं उसी के मिटने की कामना करता था !!

अब पौधे ने उस जगह को बड़े ध्यान से देखा जहाँ पर वो कभी खड़ा था !
उसकी जड़े अब भी उसके चारो ओर से घेर रही थी और उसके अवशेष मिट्टी में मिलकर उसे खाद दे रहे थे !!

उसके मुस्कराने का मतलब अब पौधे को समझ रहा था !
वो तो हर रोज़ उसके मिटने की कामना करता था , वो तो मिटकर भी उसके काम रहा था !!

नन्हे पौधे में एक नयी चेतना का संचार हो गया था और उसे अपने होने का एहसास हो गया था !

अब वो जब भी परेशानी में होता था उस खाली जमीन को देखकर मुस्कराता था !!


Tuesday, February 3, 2015

कुर्सी का खेल .......


बड़ा हो हल्ला हैं  गली गली , लॉउडस्पीकरो का जोर हैं !
आगे आगे हाथ जोड़े एक सज्जन , पीछे चेलो की रेल हैं !!

नूरा कुश्ती चालू हैं , लोकतंत्र का खेल हैं !
जिनको पहले चुना था , अब वो जेल हैं !!

वादो की झड़िया हैं , सपनो का संसार हैं !
हकीकत से कोई नहीं वास्ता , आम आदमी से किसको सरोकार हैं !!

कीचड उछालो  एक दूसरे  दामन में , उसकी कमीज मुझसे साफ़ क्यों हैं !
अजब रंग हैं राजनीति की , कल के दुश्मन आज यार हैं !!

वोटर बेचारा चुपचाप तमाशा देख रहा हैं !
वो हर एक की रग रग  से वाकिफ हैं !!

पानी , बिजली और रिहाइश की बस उसको दरकार हैं !
इन नेताओ को तो बस अपनी कुर्सी से प्यार हैं !!

चुनाव ख़त्म , जो जीत गया , वो भूल जाता हैं !
जो हार गया वो जनता को कोसता हैं !!

हारने जीतने वाले दोनों हर रोज  मिलते हैं !
"इस बार मैं , अगली बार तू" का राग अलापते हैं !!

जनता अपनी जुगत में लग जाती हैं !
हर रोज़ अपने नुमान्दो को खोजती हैं !!

ये आलिशान कारों और बंगलो के मौज लेते हैं !
वोटर को  कीड़ा समझते हैं !!

पांच साल बाद फिर से हाथ जोड़े खड़े हो जाते हैं !
भोली भाली जनता को फिर बेवकूफ बनाते हैं !!