Tuesday, June 23, 2015

रात -दिन -सवेरे

कुछ यादों की गठरी बांधे ! कुछ कल  के सपनो की पोटली !!

जीता हूँ आज को मैं इस तरह ! करते कुछ हँसी ठिठोली !!

जब उदास होता हूँ कभी ! खोल लेता हूँ अपनी गठरी !!

आँखों की कोरे गीली होती हैं ! मन के बोझ थोड़ा हलके !!

फिर चल पड़ता हूँ अपनी राह में ! कभी तेज और कभी हल्के -हल्के !!

कही कही उजाला मिलता हैं ! और कही कही घने अँधेरे !!

विश्वास खुद पर रखकर ! कटते रहते हैं रात -दिन -सवेरे !!

कभी कोई साथ  हो  लेता हैंकहीं कहीं मैं किसी के पीछे !!

कुछ यादों की गठरी बांधे ! कुछ कल  के सपनो की पोटली !!

जीता हूँ आज को मैं इस तरह ! करते कुछ हँसी ठिठोली !!


कुछ सीखता हूँ और कुछ सिखाते चलते ! कटते रहते हैं रात -दिन -सवेरे !!

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