Tuesday, November 17, 2015

ये हिन्द हैं मेरा ……..



मिटा सका कोई , मिट गए मिटाने वाले !
बाँट सका कोई , बँट गए खुद बाँटने वाले !!

हर बार चोट से उभरा था , हैं और रहेगा !
ये हिन्द हैं मेरा , यूँ ही मुस्कराता रहेगा !!

दंश झेले कितने सीने में , वीरो ने गौरव गाथा लिखी हैं !
हम हारे नहीं दुश्मनो से , बस कुछ जयचंदो ने नाक कटाई हैं !!

हम एक थे , हैं और रहेंगे !
ये हिन्द हैं मेरा, सब मिलकर आगे बढ़ेंगे !!

कितनी कोशिशे तुम कर लो जगवालो !
नींव की गहराई  क्या तुम हमारी समझ पाओगे !!

साजिश कर लो कितने ही हमें बरगलाने की !
कुव्वत अभी भी है सिकंदर को घुटने में लाने की !!

ये तो हमारे घर में ही थोड़ा वैचारिक मतभेद हैं , वर्ना मजाल क्या तुम्हारी ? 
ये हिन्द है मेरा , ध्यान रहे  - शेर के मुहँ से भी निवाला निकालने की आदत हैं पुरानी हमारी !!



Monday, November 9, 2015

चलो , इस दिवाली कुछ अलग करते हैं




चलो , इस दिवाली कुछ अलग करते हैं !
कुछ मुरझाये चेहरों पर मुस्कान लाते हैं !!

अपने सपने जो बेवजह अँधेरे की गर्त में लिपट गए थे !
उनको फिर से जिन्दा करते  हैं !!

देश के अंधकारमय माहौल में कुछ उजाला करते हैं !
देश के लिए बिना शोर किये कुछ करते हैं !!

अपनी खुशियों में कुछ रोते हुए लोगो को शामिल करते हैं !
चलो , इस दिवाली कुछ अलग करते हैं  !!

माँ लक्ष्मी और गणेश जी की अराधना करते हैं !
सबको बुद्धि , विवेक और सामर्थ्यवान बनाने की प्राथर्ना करते हैं !!

फिर से सब में   विश्वास जगाते हैं !
अँधेरा हर बार हारता हैं , यकीन दिलाते हैं !!

धरती , हवा , पानी और  आसमां को बचाने के लिए प्रयास करते हैं !
चलो , इस दिवाली कुछ अलग करते हैं  !!

दीपावली शुभ हो !


Monday, November 2, 2015

इस शहर को ये क्या हो गया है ?


इस शहर को ये क्या हो गया है ? !
यूँ तो लाखो की तादाद हैं , मगर इंसान क्यों खो गया हैं ? !!
कंक्रीट के घर , कंक्रीट की सड़के , कंक्रीट के ही रास्ते !
मिट्टी की सुगंध का नामोनिशां मिट गया हैं !!
दिखावटी और मिलावटी सब कुछ लगता हैं यहाँ !
एक सच्ची मुस्कान को तरस गया हैं !!

इस शहर को ये क्या हो गया है ? !
हर कोई भाग रहा  हैं , पता नहीं कौन सी दौड़ में हिस्सा ले रहा हैं !
फुर्सत के पलो को तो जैसे ये शहर तरस गया हैं !!
किसी को किसी के लिए वक्त नहीं हैं यहाँ !
मासूम बचपन भी चारदीवारी में दम तोड़ रहा हैं !!
तौली जा रही हैं खुशियाँ यहाँ पैसे में !
जीवन का मतलब ही इंसान भूल गया हैं !!


इस शहर को ये क्या हो  गया है ? !
इंसान का इंसान से भरोसा उठता जा रहा !
हरेक इंसान दूसरे को शक की निगाह से देख रहा हैं !!
बिक रही हैं बाजारों में हर चीज़ !
इंसानियत का  कोई मोल नहीं रहा !!
हवाओ में घुल गया हैं एक अजीब सा जहर  !
घुट घुट कर इंसान जी रहा   !!
रिश्ते अब बस नाम के रह गए !
माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने का चलन बढ़ गया यहाँ !!