Saturday, December 30, 2017

अन्तर्युद्ध


अंतर्मन की बड़ी दुविधा है ,
किस राह को अब चुनु ?

दिल और दिमाग की जोर आजमाइश है ,
चौराहे में खड़ा अब किस ओर चलूँ ?

आते है जीवन में क्षण ऐसे , पैर ठिठक जाते है
इस राह चलूँ की , उस राह चलूँ। 

भटक रहा मन जीवन पथ पर ,
यक्ष प्रश्न बन कर उभर रहा ,
मरीचिका सा भविष्य सामने ,
मार्ग कौन सा चुनूँ - दिल घबरा रहा। 

मन और मस्तिष्क के इस अन्तर्युद्ध में ,
शरीर बस कटपुतली बन रहा ,
किस राह पर चलूँ अब ,
किंककर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा रहा। 

चलना तो नियति है ,
इसके बिना कहाँ फिर गति है ,
मुझे ही इससे पार पाना होगा ,
जहाँ मन लगे , वहाँ जाना होगा। 

मेरा जीवन मेरी थाती है ,
भूलकर सब , नव प्राण फूँकना होगा ,
चल चलाचल , वैतरणी को ,
खुद ही पार करना होगा।  

Tuesday, December 26, 2017

कहानी - हर साल की

जनवरी आता है , नयी उम्मीदों को पंख लगाता है,  
फरवरी फर्र फर्र न जाने कब  बीत जाता है , 
मार्च सुहाना मौसम लेकर आता है, 
उम्मीदों को परवाज देते देते पहला तिमाही गुजर जाता है।    


अप्रैल में चहुँओर फूल खिल जाते है , 
मई में सूरज देवता आग बरसाते है , 
जून का महीना पसीना पोछने में बीत जाता है,   
आधा साल यूँ ही रीत जाता है।  

जुलाई में रिमझिम मानसून बरसता है , 
अगस्त में नदी - नालो में उफान होता है , 
सितम्बर नयी अंगड़ाई लाता है ,
साल के नौ महीने बीत गए - धीरे से कहता है।  

अक्टूबर में पेड़ो के पत्ते साख से झड़ जाते है , 
नवंबर में त्यौहार शुरू हो जाते है , 
दिसम्बर फिर सर्द हो जाता है , 
एक साल यूँ ही बीत जाता है।  

हर साल कुछ दे जाता है , 
हर साल कुछ ले जाता है , 
समय का चक्र है ,  
वक्त का पहिया चलता जाता है।   

Tuesday, December 19, 2017

कैलेंडर बदल रहा है


दीवार पर टंगा २०१७ का कैलेंडर , 
अब फड़फड़ा रहा है।  

जल्दी है उसको जगह खाली करने की , 
नए कलेवर में २०१८ आ रहा है।  

वक्त के आगे वो भी मजबूर है , 
यादो की पोटली बाँधे , अब उतर रहा है।  

उस कील को धन्यवाद कहिये , 
जो संभाले रखी थी इसको , 
अब उसी पर नए साल का , 
ये कैलेंडर चढ़ना है।  

आगे , बढिये - हर रोज़ ये कैलेंडर कहता है , 
खुद से काटकर एक नया दिन हमें देता है , 
यही नियति है शायद , 
वक्त यहाँ सबका बदलता है।  

Saturday, December 16, 2017

बहुत याद आते है

बहुत याद आते है , 
कुछ लोग , 
जो चले जाते है , 
जीवन में , 
अक्सर वो , 
हमारी , 
ऐसी छाप , 
छोड़ जाते है।  

यूँ तो ज़िन्दगी का , 
कारवाँ फिर भी , 
चलता रहता है , 
अपनी गति से , 
मगर वो , 
जब भी याद , 
आते है , 
बहुत याद आते है।  

दिल के , 
किसी कोने , 
शायद , 
वो हमारे , 
बस जाते है , 
जब कभी जिक्र हो , 
आँसू बनकर , 
आँखों से छलक , 
जाते है।  


कुछ लोग , 
जो बिछड़ जाते है , 
कभी कभी , 
बहुत याद आते है, 
दिल के किसी , 
कोने में , 
बैठे , 
जब याद आते है , 
आँखों से पानी बन , 
रुला जाते है, 
बहुत याद आते है।    


( अपने पिताजी को समर्पित )

Thursday, December 14, 2017

शब्द आमंत्रण



आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

सच लिखने का 'साहस' बनो ,
'हताशा ' के 'बादलों ' को छिन्न-भिन्न करो ,
'प्यार बनो' , 'अभिमान' बनो,
'गौरव' तुम , 'संस्कार' बनो।

आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

दुःखियों की 'पुकार' बनो,
जुल्मो की 'काट' बनो ,
सौहार्द का 'रस'  घोलो ,
नफरत का 'नाश' बनो।

आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

कुछ इस तरह से आज 'सजो' ,
आशा का 'नव संचार' करो ,
दुःख हरो , मद हरो ,
नव 'उल्लास' का रंग भरो।

आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

गीत बनो , कहानी रचो
श्रंगार लिखो , वेदना की पीड़ा में ढलो,
ख़ुशी या गम के फ़साने में बसो।
किसी भी रूप में आज ढलो। 

आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

दोस्ती के नए आयाम गड़ो ,
प्यार के अर्थ को अंजाम दो ,
बड़ो का आशीर्वाद लिखो ,
छोटो को स्नेह से निहाल करो।


आओ शब्दो , आपको आमंत्रण देता हूँ ,
हाथ जोड़कर , विनती करता हूँ ,
आज किसी कलमकार को आशीष  दो ,
उसकी रचना में स्थान ग्रहण कर उसे 'अमर' कर दो।     

Thursday, December 7, 2017

ऑनलाइन दुनिया और हम



वास्तविक दुनिया से अलग एक ,
ऑनलाइन दुनिया है। 
एक क्लिक पर जहाँ सब कुछ ,
हासिल है। 

जुड़ गया है पूरब से पश्चिम ,
उत्तर से दक्षिण ,
कुछ तरंगो का गजब मायाजाल है ,
ऑनलाइन दुनिया वाकई कमाल है। 

पुराने बिछड़े दोस्त खोज लो ,
नए बनने के लिए तैयार है ,
अपनी कलाकारी और हुनर दिखाने के लिए ,
ये मंच कमाल है। 

ज्ञान - विज्ञान बस एक क्लिक दूर है ,
धर्म - अध्यात्म का यहाँ सम्पूर्ण ज्ञान हैं ,
कामकाजी अपने काम की चीज ढूंढते ,
फुरसतिये के लिए पूरा टाइम पास है। 

वास्तविक दुनिया में भले ही शान्ति हो ,
ऑनलाइन दुनिया में हाहाकार हैं ,
लाइक और शेयर करने का ,
हर खबर को लाइसेंस प्राप्त है। 

छूट न जाये कोई इस दुनिया से ,
व्यापार का ये नया बाजार है ,
आपकी उँगलियों पर ,
ये सारा ऑनलाइन संसार है। 

वैधानिक चेतावनी है ,
डिजिटल इस संसार में सतर्क रहना ,
छद्मभेषी भी बहुत  घूम रहे है ,
अँगुलियों पर थोड़ा लगाम भी रखना।  

Monday, December 4, 2017

बुजुर्ग

ये जो घर के बड़े - बूढ़े है , 
ये भी पहले हमारे जैसे ही थे , 
इन्होने भी बचपन देखा , 
और फिर जवानी का दौर , 

ऐसा नहीं हैं ये कुछ जानते नहीं है , 
ये वो सब जानते है , 
शायद इसीलिये बोलते है , 
जो हमारी किताबो में कभी लिखा ही नहीं।  

ज़िन्दगी का तजुर्बा लिए बैठे है , 
बरगद का पेड़ है , 
जो हर मौसम और समय को ,
सलीके से जी आये है, 
हमारी तरह थोड़ी परेशानी में , 
कराहते नहीं।  

अब इन्हे कुछ नहीं चाहिए , 
चाहिए तो थोड़ा इज्जत और सम्मान , 
बदले में ये आपको दे सकते है , 
वो तजुर्बा जो शायद कही लिखा ही नहीं।  

आज हम जो भी है , 
इनके आशीष के बगैर कुछ भी नहीं , 
जीवन का उत्तरार्ध है , 
एक दिन हमें भी होना हैं यहीं।  


Thursday, November 30, 2017

उने रे , साल मी एक बार ( (कुमाउँनी कविता)



उने रे , साल मी एक बार 
खोल दिए आपुण घरे द्वार, 
बाँझ झन पड़िए दिए , 
जरूर अये साल मी एक बार।  

खौ मी अब सिसूण जाम गो , 
भेतर हेगी चौबाट , 
पाखेक पाथर चोर ही ल गो , 
बल्लियों में पड़ गे दरार।  

त्यर निशाणी उसकये छीन , 
करनि रोज़ त्यर इंतजार , 
फल - फूलो बोठो में बानर भे गी , 
लुके री मीन त्यर लीजी अनार।  

तु , जा ल छ , खूब तरक्की करिये , 
आपुण गौ -गाड़ नाम रोशन करिये ,
बस एक विनती छू , 
आपुण गौ- गाड़ झन भूलिए।  

उने रे ईज़ा , साल मी एक बार 
खोल दिए आपुण घरे द्वार, 
बाँझ झन पड़िए दिए , 
जरूर अये साल मी एक बार। 

Tuesday, November 28, 2017

चलो , आगे बढ़ते है


चलो ,
आगे बढ़ते है ,
कड़वी यादो को दफ़न करते है ,
मीठी यादों के संग चलते है। 

चलो ,
आगे बढ़ते है ,
जो हो गया - वो हो गया ,
आगे का सफर तय करते है। 

चलो ,
आगे बढ़ते है ,
समय अभी हाथ से फिसला नहीं ,
जो बचा है उसी में इतिहास रचते है। 

चलो ,
आगे बढ़ते है ,
जो रिश्ते साथ में हैं ,
उनको संग ले चलते हैं। 

चलो ,
आगे बढ़ते है ,
जिंदगी ने अनुभव तो दे ही दिया ,
दिल को फिर जूनून देते है । 

चलो ,
आगे बढ़ते है ,
औरो के लिए बहुत जी लिए ,
अब अपने लिए भी जीते हैं। 

चलो ,
आगे बढ़ते है ,
नए जोश और उमंग से ,
नयी उच्चाईयाँ छूते है।  

Wednesday, November 15, 2017

नया दौर

कुछ अलग आबो हवा है , 
इस दौर की , 
हर कोई मशरूफ है।  

लद गए वो दिन , 
बेतकल्लुफ़ी के , 
कदम कदम पर अब नजर हैं।  

बेफिजूल चीजों के लिए, 
वक्त ही वक्त है, 
काम की चीजों के लिए वक्त कम है।  

ज्ञान बाँट रहे प्रपंची , 
विद्यवानो की पूछ , 
जरा कम है।  

सियासतदारो को खबर है , 
उछालते रहो ऊलजलूल मुद्दे , 
जनता जनार्दन की याददाश्त जरा कम है।  

युवा देश का भविष्य है , 
उसे इस बात की कहा खबर है ,
ऑनलाइन दुनिया में व्यस्त है।  

तू डाल डाल ,
मैं पात पात , 
कि अजब, आजकल लड़ाई है।  

Tuesday, November 14, 2017

बंजारे


कभी इधर , 
कभी उधर ,

कभी इस शहर , 
कभी उस नगर।   

कभी सपनो की तलाश में निकले , 
कभी रोज़ी रोटी का इंतजाम करने भटके।   

पैरो में पंख लग गए , 
एक जगह ये कहीं न ठहरे। 

कहाँ रहा अब एक ठिकाना रे , 
बंजारे।  हम सब बंजारे।  

Saturday, November 11, 2017

मैं पहाड़ी हूँ

मैं पहाड़ी हूँ - पहाड़ो से आया हूँ,
साथ अपने न जाने कितनी सौगातें लाया हूँ।
तरसते है जब लोग हवा को ,
मैं ठंडी हवायें लाया हूँ।

आर ओ का पानी पीने वालो ,
मैं बहती नदियाँ का पानी पीकर आया हूँ।
रिश्तो को जब भूल रहे लोग ,
मैं - ईज़ा , बौज्यू , दद्दा , भूलि साथ लाया हूँ।

जाते होंगे तुम लोग जिम में फिट रहने के लिए ,
मैं तो अपने पहाड़ घूम आया हूँ।
बंद कमरे में ए सी की हवा खाने वालो ,
मैं खुले आसमान के नीचे ठंडी हवा पाया हूँ।

मैं पहाड़ी हूँ , पहाड़ो से आया हूँ ,
जिगर में अपने पहाड़ो की हिम्मत लाया हूँ।
दिखता भले ही सीधा सादा हूँ ,
संघर्ष की दास्तान लाया हूँ।

जब तक शान्त हूँ , ठीक है ,
बिगड़ गया तो , तूफ़ान लाया हूँ।
तुलना मत करना - याद रखना ,
तरकश में अपने सारे तीर लाया हूँ।

कही भी रहूँ दुनिया में ,
यादो की गठरी साथ लाया हूँ।
ताल ठोक कर कहता हूँ ,
मैं पहाड़ी हूँ।
जिस उच्चाई की तुम बात करते हो ,
वो मैं , कब का चढ़ आया हूँ।

Friday, November 10, 2017

कशमकश


हर तरफ बाजार लगा है ,  
हर कोई कुछ न कुछ बेच रहा है।  
दुविधा में है खरीददार , 
हर बार अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है।  

दिमाग हर बार ये कहता है , 
भरोसा मत कर अब किसी पर , 
मगर दिल के आगे , 
किसी का क्या जोर चलता है।  

गलती के बाद ,
फिर पछताना , रोना -धोना ,  
दिमाग की न सुन ,
दिल फिर नए रोज़ बाजार होता है।   

Tuesday, November 7, 2017

मुकद्दर



मुकद्दर जागेगा इक दिन , 
मैं मेहनत से क्यों हार मानू।  

मंज़िल मिलेगी इक दिन , 
मैं रोज़ सीढ़ियाँ तो चढ़ूँ।  

समय बदलेगा जरूर इक दिन , 
मैं समय की इज्जत तो करूँ।  

सफलता - असफलता तो परिणाम है कर्मो का , 
चलने से पहले ही इन सबसे क्यों डरूँ।  

कर्मो पर ही मेरा नियंत्रण है , 
सिर्फ किस्मत के सहारे ही क्यों बैठूँ।  

जीवन सिर्फ सेज नहीं फूलो की , 
काँटों से फिर क्यों डरूँ।  

प्रारब्ध जो भी होगा मेरा , 
मैं उस खुदा पर भरोसा तो रखूँ।  

Thursday, November 2, 2017

एक पत्र - - पिता का पुत्र के नाम


प्रिय पुत्र , चिरंजीवी रहो,  
सदा खुश और आबाद रहो । 
आज तुम्हारी याद आयी,
आँखे मेरी भर आयी ।। 

जब तू छोटा था , खूब रोता था ,  
बात बात पर जिद्द करता था।
माँ का तुझपर बड़ा लाड़ था,
तेरी जिद्द पूरी हो , दो - दो जगह नौकरी करता था ।

तू हमारी आँखों का तारा था , सपनो का सितारा था। 
हमारे जीने का तू ही सहारा था।। 
तेरे सपनो के आगे, हम भी झुक गए। 
तुझे विदेश जाने की अनुमति देकर, हम आधे उसी दिन मर गए।।

तेरी माँ तेरे इन्तजार में खप गयी ,
मेरी ज़िन्दगी उजाड़ हो गयी। 
तू अपनी दुनिया में रम गया ,
मैं बुढ़ापे में अनाथ हो गया।।

तेरी बहन आ जाती है कभी कभार,
" पापा , आप हमारे साथ रहो " कहती है हर बार ।
उसको मैं हर बार समझाता हूँ, 
तेरी माँ और तुम्हारी यादो का खजाना हैं इस घर में मेरे साथ।

बहुत खाली सा महसूस होता है जीवन ,
इसका भार अब नहीं उठता। 
वसीयत तेरे नाम लिख दी है ,
अपना हक़ समझकर रख लेना ।।

अपने बच्चो का खूब ख्याल रखना , 
अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना ।
कभी आये याद मेरी तो ,
फोन जरूर करना। 

आशीष बना रहे तुझपर , तू खूब तरक्की करें। 
जहाँ भी रहें , खुश रहे।।

Wednesday, November 1, 2017

लक्ष्य


कोशिश तो कर , 
मंजिल मिलेगी जरूर।  

हौंसला रख , 
समय बदलेगा जरूर।  

कर्म पर विश्वास रख , 
हथेली की रेखाये बदलेंगी जरूर।  

परिश्रम की ताकत गजब , 
मरुस्थल से भी पानी निकलेगा जरूर।  

हुनर पर भरोसा रख , 
किस्मत बदलेगी जरूर।  

स्वयं को पहचान , 
पहचान बनेगी जरूर।  

लक्ष्य गर साफ़ है , 
तो पहुँचेगा जरूर।  

Tuesday, October 31, 2017

दम


हौंसला और उम्मीद




हौंसला और उम्मीद रखिये , 
पत्थरो में भी फूल खिला करते है।  

हैं अगर ज़िद्द मन में तो , 
जीवन के रास्ते खुद -ब -खुद खुलते है।  

कौन रोक  सकता है फिर उन हवाओ को , 
जो अपने अंदर तूफ़ान रखते है।  

जिजीविषा जीवन की अदभुत है ,
कांटो से घिरकर ही गुलाब खिलते है।  

Monday, October 30, 2017

समाधान



कर वही , 
जो लगे सही , 
दिल की सुन 
दिमाग की नहीं। 

दिमाग 
हिसाब किताब 
करता है , 
और 
दिल , 
ज़िन्दगी के लिए , 
वजह , 
ढूंढता है।  

Thursday, October 26, 2017

दुनिया के उसूल

बदल लिए है दुनिया ने उसूल , 
आप भी बदल लीजिये ,
सच्चाई और ईमानदारी के झोले में , 
थोड़ा झूठ और थोड़ा बेईमानी भर लीजिये।  

लद गए वो दिन जब सच्चे और ईमानदारों की , 
क़द्र और तरक्की होती थी , 
देख लीजिये अपने इर्द गिर्द , 
सबसे पहले इन्ही की बेइज़्ज़ती होती है।  

नहीं रहा वो दौर अब , 
जमाना बदल गया है , 
होते थे पहले भी पाखंडी , 
मगर अलग से पहचाने जाते थे , 
अब दौर अलग है , 
कौन , कहाँ , किस मोड़ पर , 
टकरा जाये - पहचानना असंभव है।  

अब कर्मो के फल की चिंता नहीं होती , 
भले - बुरे की श्रेणी अलग नहीं होती , 
अपने फायदे के लिए सब जायज़ लगता है , 
हर रिश्ता अब स्वार्थ से गढ़ता है।  

इंसानियत अब जैसे किताबो तक ही सिमट गयी है , 
शरीफो  की बेइज्जती सरेआम हो रही है , 
बुजुर्गो के आत्मसात कायदे कानूनों की , 
आधुनिकता के नाम पर बलि चढ़ रही है।  

बदल लिए है दुनिया ने उसूल , 
आप भी बदल लीजिये ,
सच्चाई और ईमानदारी के झोले में , 
थोड़ा झूठ और थोड़ा बेईमानी भर लीजिये। 

नहीं बदल सकते अपने उसूल , 
तो आइये स्वागत हैं मेरे स्कूल , 
कठिन डगर है मगर , 
दिल को मिलता है बड़ा सुकून।  

पग -पग में रोड़े होंगे , 
कुंठा के घेरे होंगे , 
नाते रिश्तेदार सब मुहँ मोड़ेंगे , 
लेकिन हम चैन की नींद सोयेंगे।  

न खोने की ज्यादा चिंता होगी , 
न बहुत कुछ पाने का लालच , 
जो मिलेगा राहे -ए - ज़िन्दगी , 
उसी में हँसी ख़ुशी ज़िन्दगी जी लेंगे।  

करेंगे अपना काम सिद्दत से , 
काम से अपनी पहचान बनायेंगे , 
दुनिया बदल ले भले अपने उसूल , 
हम "जो सही है " उसी ऱाह चलेंगें।  
  

Tuesday, October 24, 2017

कैसे कहूं - ज़िंदा है हम

मन बेचैन ,
दिमाग में उथल पुथल
दौड़ता भागता तन ,
न इधर , न उधर
भविष्य की चिंता में ,
आज पिस रहा ,
बिताये अच्छे दिनों की याद ,
आँखों की कोरे नम 

हाय ! ये कैसा जीवन,   

कैसे कहूं - ज़िंदा है हम।

किसी दूसरे की परवाह नहीं ,
अपने संकटो से ही जूझ रहा मन ,
टिक टिक समय बीत रहा ,
न इधर के , न उधर के रहे हम। 

भावनाओ के लिए वक्त नहीं ,
कुंठा उठाये रखे है फन ,
जितना पास है उसमे संतोष नहीं ,
पता नहीं क्या चाहता है मन। 

हाय ! ये कैसा जीवन,   
कैसे कहूं - ज़िंदा है हम।

बनावटी हँसी अधरों में ,
नहीं पसीजता किसी की लाचारी पर मन ,
बाहर से जितना कठोर बनता ,
अंदर सारा खोखलापन। 

स्वार्थ हर जगह पैर पसारे ,
रिश्ते नाते निभा रहे बेमन ,
झूठी शान का बढ़ रहा चलन ,
लालच घर कर रहा ,
ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी की दुश्मन 

हाय ! ये कैसा जीवन। 
कैसे कहूं - ज़िंदा है हम।

Sunday, October 22, 2017

दिवाली के पटाखे



दिवाली के पटाखे , 
बहुत कुछ समझा और सिखा गए , 
तूफ़ान था इनके भीतर , 
भड़ाम से फूटकर , 
दुसरो को खुशियाँ दे गए।  

जो कल तक थे चमचमाते पैकेट के भीतर ,
आज  बस उनका जला हुए खोल बाकी , 
तितर बितर टुकड़े , 
उठाकर किसी ने , 
कूड़े के ढेर में सुपुर्द कर दिए।  

Thursday, October 12, 2017

मोमबत्ती


ये मोमबत्ती भी न बड़ा तंग करती है , 
जलने के बाद अपनी बचे हुए धाँगे और , 
पिघले मोम से जगह गन्दा कर देती है , 

किया क्या इसने ? 
अँधेरे में रौशनी देने के सिवाय , 
अपने को जलाया ही तो है , 
सब ताप सहन करने के बाद , 
नियति ही इसकी ऐसी थी , 
खुरच दो इसके सब निशाँ , 
कही भी कुछ रह  न जाये , 
जगह चाहिए बिलकुल साफ़, 
जब फिर अँधेरा होगा , 
जला लेंगे दूसरी मोमबत्ती , 
क्या कमी है हमारे पास।   

Wednesday, October 11, 2017

ज़िन्दगी

हर किसी के लिए ज़िन्दगी के मायने अलग ,
किसी के लिए चक्रव्यूह ,
किसी के लिए मृगतृष्णा ,
किसी के लिए काँटो का ताज ,
किसी के लिए फूलो की सेज ,
किसी के लिए संघर्ष गाथा ,
किसी के लिए भाग्य का खेल,
किसी के लिए अंतहीन दौड़ ,
किसी के लिए मोक्ष ,
किसी के लिए प्यार -मोहब्बत ,
किसी के लिए रंजिश का सफर ,
हर किसी के लिए ज़िन्दगी के मायने अलग।

गरीब के लिए दो वक्त की रोटी ,
अमीर के लिए ऐशो आराम का जीवन ,
प्रेमी के लिए प्रेयसी ,
प्रेयसी के लिए प्रेमी जीवन ,
रोगी के लिए स्वास्थ्य ,
निरोगी के लिए भरपेट भोजन ,
माँ के लिए उसके बच्चे जीवन ,
पिता  के लिए बच्चो का भविष्य जीवन ,
दोस्तों के लिए दोस्ती ,
दुश्मनो के लिए दुश्मनी ,
हर किसी के लिए ज़िन्दगी के मायने अलग,
ऐ ! ज़िन्दगी तेरे इतने रूपों को नमन। 

कलाकार के लिए रंगमंच ,
खिलाडी के लिए खेल ,
कवि के लिए कविता ,
लेखक के लिए कहानी ,
नेता के लिए कुर्सी ,
किसान के लिए फसल ,
छात्रों के लिए पढाई ,
बच्चो के लिए मौज मस्ती
नौकरीपेशा के लिए सैलरी ,
बेरोजगारो के लिए नौकरी ,
सैनिको के लिए देशभक्ति ,
एक ज़िन्दगी , कितने रंग ,
शायद इसलिए कहते है रंगीन ज़िन्दगी। 

कोई इसे क्षणभंगुर कहता ,
कोई ठोस धरातल ,
कोई नदी की संज्ञा देता ,
कोई कहता मरुस्थल। 
कोई कहता खूबसूरत ,
कोई कहता दलदल ,
कोई कहता आज़ादी ,
कोई कहता सफर।    
किसी के लिए जिम्मेदारियां ,
कोई अपने में ही मस्त मगन ,
ज़िन्दगी एक , रूप अनेक ,
ज़िन्दगी देने वाले तुझे शत शत नमन। 

मेरी नजर में बहती नदी है ज़िन्दगी ,
कही से शुरू होकर ,
कही दूर सागर में मिलना है ज़िन्दगी ,
इस सफर में कही चंचलता ,
कही ठहराव ,
कही तेज बहाव ,
कही गहराई ,
कही कंकड़ पत्थरो  में लुढ़कती ज़िन्दगी ,
कही पूजा योग्य ,
कही तिरस्कृत ,
कही उफान ,
कही शांतचित ,
लेकर अपने साथ कितने अनुभव ,
कुछ खट्टे , कुछ मीठे ,
सागर में मिलने से पहले ,

अविरल बहाव ही शायद है ज़िन्दगी।  

Monday, October 9, 2017

दिवाली के पटाखे और मिठाई

दीये बेचकर कुछ पैसे लेकर ,
वो मासूम अपने माँ से बोली ,
" माँ , आज दिवाली है ,
हम भी मनाते है ,
कुछ मिठाई और पटाखे हम भी लाते हैं। "

माँ ने उससे पैसे लिए और
हिसाब किताब करने लगी ,
और बोली ,
" सारे दीये तुझे तीन सौ रुपये में बेचने को बोला था ,
तू उन्हें दो सौ रुपये में ही बेच आयी ,
अब कहाँ से खरीदू पटाखे और मिठाई ?"
बेटी रुँआसी सी बोली ,
" अम्मा , सबने तय कीमत से कम बोली लगाई
 किसी ने दो  रूपये , किसी ने पाँच  रुपये कम कीमत चुकाई ,
इसलिए तीन सौ रुपये के दीये दो सौ रुपये में ही बेच पाई। "

माँ बोली ,
"  चल , कोई बात नहीं ,
डेढ़ सौ रुपये में घर चला लूंगी ,
पचास रुपये ले , भाई को साथ ले जा ,
जमकर लाना पटाखे और मिठाई। "

वो भाई का हाथ पकड़ बाजार चल दी ,
अब उसे मोलभाव करने की आज़ादी मिल गयी , 
बाजार में  खो सी गयी ,
चंद पटाखे और कुछ लड्डू लेकर ,
दस रुपये माँ को लौटाती बोली ,
" अम्मा , शुभ दीपावली। "

Thursday, October 5, 2017

टेक्नोलॉजी और इश्क

टेक्नोलॉजी ने कमाल कर दिया , 
आज के इश्क को कितना आसान कर दिया , 
कबूतर और चिट्ठियों के दौर को पीछे छोड़ दिया , 
मोबाइल ने सब काम आसान कर दिया।  

दूरियाँ सात समंदर की भी हैं तो क्या हुआ ?
व्हाट्सएप्प के वीडियो कॉल ने रूबरू कर दिया , 
फिर भी मिलना ही हैं तो ,  
मेट्रो , एयरोप्लेन , कार से कही भी  घंटो में पहुँच गया।  

अब न सताती याद किसी की , 
तुरंत सेल्फी खींची  और भेज दिया।  
उपहार देना हो गर कुछ तो , 
ऑनलाइन आर्डर देकर सीधा उसके घर पहुँचा दिया।  


गया वो जमाना जब छुप छुप कर मिलना होता था , 
शॉपिंग मॉलों के एयर कण्डीशनएड माहौल ने हल कर दिया , 
अब कोई नहीं डर फोटो या चिट्ठियां पकडे जाने का , 
एंड्राइड में  पासवर्ड ने सब कुछ छुपा लिया।  

टेक्नोलॉजी ने कमाल कर दिया , 
आज के इश्क को कितना आसान कर दिया , 
कबूतर और चिट्ठियों के दौर को पीछे छोड़ दिया , 
मोबाइल ने सब काम  आसान कर दिया।  

Tuesday, October 3, 2017

यादो का गलियारा


उन गलियों में जाना हुआ , 
जहाँ कभी हमारी सपनो की दुनिया बसती थी , 
उन पगडंडियों में फिर कदम पडे , 
जिन पर जगह जगह हमारे बनाये निशान अब भी पड़े थे।  

उस नदी के ऊपर पुल से गुजरना हुआ , 
जिस नदी को हम पैंट को घुटने तक मोड़कर हँसते पार करते थे , 
उस मैदान से रूबरू हुए , 
जिस मैदान पर हम कभी चौक्के - छक्के लगाते थे।  

उस शिवालय के आगे से गुजरना हुआ , 
जिसमे हम कभी घंटो बैठ भागवत सुना करते थे , 
उस चाचा से बात हुई , 
जिसके पेड़ो के फल हम चुराये करते थे।  

वो  चीड़ के पेड़ को भी देखना हुआ , 
जिसमे कभी हम खुरच कर अपना नाम खोद आये थे , 
नाम अभी भी लिखा हुआ था , 
मगर अक्षर अब बड़े हो चुके थे। 

वो पहाड़ की चोटी को चढ़ने की हिम्मत न हुई ,
जिसमे हम कभी न जाने दिन में कितनी बार चढ़ जाते थे ,
वो सीढ़ीनुमा खेत जो अब डराते है ,
कभी हम उनमे कूदम - कूद खेलते थे।  

नजरे  उन तमाम यादो को ढूँढ रही थी , 
जो कही न कही दिमाग में बहुत गहरी थी , 
लगा जैसे वक्त का पहिया रुक सा गया , 
मेरा बचपन , मेरा गाँव  मुझे फिर से मिल गया।  


Monday, September 25, 2017

रावण - कुम्भकरण संवाद

"उठो , जागो लंका के वीर ,
आपदा आयी है ,
दो मनुज संग वानरों की सेना ,
लंका पर चढ़ आयी हैं।"

सुन रावण की आवाज ,
कुम्भ घोर निद्रा से जागा ,
आयी है कोई घनघोर विपदा लंकेश पर ,
मन ही मन विचारा। 

" हे , लंका के वीर शिरोमणि ,
  इस निद्रा को त्याग अब चिरनिद्रा की बारी है ,
  एक एक कर मारे गए सब कुल के वीर ,
  अब तुम्हारी बारी हैं। "

कुम्भकरण मुस्कराया ,
खूब अपने लिए खाना मँगवाया ,
छक कर खा पीकर बोला ,
" तुम शिवभक्त , परमज्ञानी भ्राता ,
  बताओ ,  कहाँ युद्ध के लिए जाना हैं। "

रावण ने सारी कथा बताई ,
सुनकर कुम्भकरण  बोला ,
" घोर अपराध किया तुमने भाई ,
किसी स्त्री का अपरहण,
बिलकुल भी क्षमायोग्य नहीं हैं ,
इसे बड़ा अपराध दुनिया में कोई नहीं हैं ,
इसलिए शायद अब ,
रावण कुल के विनाश की नौबत आयी हैं।
हे रावण , स्त्री इस जगत का आधार है ,
उसका एक एक आँसू प्रलय समान हैं। "

रावण बोला ,
" जानता हूँ भाई , अपराध मैंने किया हैं ,
  जगत माता सीता का  हरण किया है , 
  राक्षसों के पाप बढ़ गए थे ,
  सत्ता और शक्ति के मद में चूर हो गए थे ,
  अब राक्षस कुल का विनाश जरुरी हैं ,
  राम राज्य स्थापना के लिए हमारा जाना भी जरुरी हैं।
  स्त्री का जब जब भी अपमान होगा ,

  रावण का संहार जरुरी होगा। "