Friday, July 14, 2017

Let us live the life again


Let us live the life again,
Life is so beautiful,
Sorry for those days,
Which I had spent in vain.

Where is the mighty sorrow?
Where is the heavy pain?
I want to tell them,
They cannot defeat me now,
I will be happy and cherish life again.

Let us give colours to life again,
Make a rainbow once again.
Let us forget the past,
Start a fresh, from the scratch.

Wipe the tears , 
Lighten the heart,
Forget the pain ,
Let us live the life again.

Let us enjoy the sunshine,
Feel the moonlight ,
Enjoy the rain.
Let us live the life again.

Let us live the life again,
Life is so beautiful,
Sorry for those days,
Which I had spent in vain.






Saturday, July 8, 2017

चलो , आज कुछ लिखते हैं



चलो , आज कुछ लिखते हैं ,
आपबीती या कोरी कल्पना , 
कुछ प्रेरणादायी या फिर ,
कुछ चुभने वाला ही लिखते हैं।  

चलो , आज कुछ शब्दों को प्राण देते हैं , 
गीत बने या कहानी , 
कविता बने या न बने , 
अपनी भावनाओ को आकार  देते हैं, 
चलो , आज कुछ लिखते हैं।  

किसी को अच्छा लगे , न लगे , 
तुकबंदी बने या न बने , 
खत्म हो या न हो , 
कुछ शब्दों से अपने जज्बात बयां करते हैं , 
चलो , आज कुछ लिखते हैं।  

जो दिख रहा , जो घट रहा , 
अच्छा हो या बुरा , 
इसकी फिक्र दुसरो पर छोड़ते हैं , 
शब्दों से आज खेलते हैं , 
चलो , आज कुछ लिखते हैं।  

पंकितयाँ बने या न बने , 
अर्थ कुछ बने या न बने , 
व्याकरण की चिंता किये बगैर , 
आज कुछ अपने लिए लिखते हैं , 
चलो , आज कुछ लिखते हैं।  

Friday, July 7, 2017

एकाकार ,एकमत और एकजुट


एकाकार , एकमत और एकजुट ,  
गर किसी दिन हो गए भारतीय , 
तो फिर कौन हमें रोक सकता हैं , 
सवा अरब की हुंकार कौन सुन सकता हैं ।  

जरुरी हैं हम पहले अपना मन बनाये , 
जाति - क्षेत्र - धर्म- वर्ण - संप्रदाय से अपने को ऊपर उठाये , 
एक राष्ट्र - एक धर्म : भारतीयता को अपनाये , 
देश हित- सर्वोच्च हित : एकाकार , एकमत और एकजुट हो जाये।  

शताब्दियों का इतिहास गवाह हैं , 
हमने खुद से चोट खायी हैं , 
अपने अपने हित ऊपर रखकर , 
हमने गुलामी पायी हैं।  

इतिहास से सबक लेकर अब आगे बढ़ना हैं , 
" हम सब भारतीय हैं " - नारा लेकर चलना हैं , 
उठो , जागो - भारतीयों अब , निद्रा का त्याग करना हैं ,
"एक भारत - श्रेष्ठ  भारत "  बनाना हैं ।



Wednesday, July 5, 2017

आओ - कभी

आओ - कभी यूँ ही बतियाते हैं , 
कुछ तुम सुनाओ - कुछ हम सुनाते है।  

बहुत दिन हो गए - रूबरू नहीं हुए हैं, 
समय निकालो , साथ में चाय पीते है ,
यूँ तो फोन से बातचीत हो ही जाती हैं , 
मगर तुम्हारे संग चाय पीने की बात निराली हैं।  

अब समय न होने का बहाना मत बनाना , 
तुम न आ सकते तो हमें ही बुला लेना , 
काम तो रोज़ होंगे और  करने भी पड़ेंगे ,  
आओ , की जरा  फिर से बेबाक हँसेंगे।  

वर्षो बीत गए दिल खोल के हँसे नहीं , 
दिल की बात किसी से कहें नहीं , 
बहुत कुछ खोया - बहुत कुछ पाया ,
हर बार ज़िन्दगी का मतलब अलग समझ आया।  

आओ की जरा दिल का गुबार उड़ाते हैं , 
कुछ तुम सुनाना , कुछ हम सुनाते हैं।