Wednesday, August 16, 2017

चक्रव्यूह


ज़िन्दगी की कुछ उलझने सुलझाने निकला , 
और उलझनों का इजाफा हो गया,   
घुस तो गया उलझनों में , 
सुलझाते सुलझाते चक्रव्यूह में घिर गया।    

कुछ उलझने बिना बात की थी , 
कुछ छोटी से उलझने -बवाल निकली , 
कुछ तो सिर्फ मेरे दिमाग में थी , 
और कुछ कई सवालो का जवाब निकली।  

अधिकतर उलझनों का हल  मेरे पास ही था , 
पहल मैं ही क्यों करूँ ? पर अटका था , 
कुछ मेरे संकोचो ने  और कुछ मेरी "मैं " ने , 
आज मुझे इस इस चक्रव्यूह में फँसा दिया था।  

अब निकलना तो मुझे ही होगा , 
अपने को संतुलित करना होगा , 
खुले दिमाग से सोचना होगा ,
"मैं" के खोह से निकलना होगा।  

शायद तभी इस चक्रव्यूह को भेद पाउँगा , 
"मैं" अकेला सब कुछ नहीं हूँ , 
"अहम " का मुझे त्याग करना होगा,
मुझे जीवन यात्रा में बहुतो का साथ चाहिए होगा।   

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