Thursday, September 7, 2017

बचपना




बड़प्पन का लबादा ओढ़े बहुत दिन हो गए , 
चलो थोड़ा बचपना करते  है।
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से उकता गए हैं , 
थोड़ा आवारागर्दी का लुफ्त उठाते हैं।  

सोचने का काम दुसरो को देकर , 
चलो , बिना बात के खिलखिलाते हैं।
मन जरा हल्का करते हैं , 
चलो थोड़ा बच्चा बनते हैं ।   

है ज़िन्दगी में कई समस्याएं , 
है होगी कल की फिक्र , 
है जिम्मेदारियों का बोझ बहुत , 
कभी कभी इनको थोड़ा अनदेखा करते है , 
चलो , थोड़ी देर  ज़िन्दगी से कुछ पल चुराते हैं ,
आओ की , थोड़ा बचपना फिर जीते है। 

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