Saturday, December 30, 2017

अन्तर्युद्ध


अंतर्मन की बड़ी दुविधा है ,
किस राह को अब चुनु ?

दिल और दिमाग की जोर आजमाइश है ,
चौराहे में खड़ा अब किस ओर चलूँ ?

आते है जीवन में क्षण ऐसे , पैर ठिठक जाते है
इस राह चलूँ की , उस राह चलूँ। 

भटक रहा मन जीवन पथ पर ,
यक्ष प्रश्न बन कर उभर रहा ,
मरीचिका सा भविष्य सामने ,
मार्ग कौन सा चुनूँ - दिल घबरा रहा। 

मन और मस्तिष्क के इस अन्तर्युद्ध में ,
शरीर बस कटपुतली बन रहा ,
किस राह पर चलूँ अब ,
किंककर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा रहा। 

चलना तो नियति है ,
इसके बिना कहाँ फिर गति है ,
मुझे ही इससे पार पाना होगा ,
जहाँ मन लगे , वहाँ जाना होगा। 

मेरा जीवन मेरी थाती है ,
भूलकर सब , नव प्राण फूँकना होगा ,
चल चलाचल , वैतरणी को ,
खुद ही पार करना होगा।  

Tuesday, December 26, 2017

कहानी - हर साल की

जनवरी आता है , नयी उम्मीदों को पंख लगाता है,  
फरवरी फर्र फर्र न जाने कब  बीत जाता है , 
मार्च सुहाना मौसम लेकर आता है, 
उम्मीदों को परवाज देते देते पहला तिमाही गुजर जाता है।    


अप्रैल में चहुँओर फूल खिल जाते है , 
मई में सूरज देवता आग बरसाते है , 
जून का महीना पसीना पोछने में बीत जाता है,   
आधा साल यूँ ही रीत जाता है।  

जुलाई में रिमझिम मानसून बरसता है , 
अगस्त में नदी - नालो में उफान होता है , 
सितम्बर नयी अंगड़ाई लाता है ,
साल के नौ महीने बीत गए - धीरे से कहता है।  

अक्टूबर में पेड़ो के पत्ते साख से झड़ जाते है , 
नवंबर में त्यौहार शुरू हो जाते है , 
दिसम्बर फिर सर्द हो जाता है , 
एक साल यूँ ही बीत जाता है।  

हर साल कुछ दे जाता है , 
हर साल कुछ ले जाता है , 
समय का चक्र है ,  
वक्त का पहिया चलता जाता है।   

Tuesday, December 19, 2017

कैलेंडर बदल रहा है


दीवार पर टंगा २०१७ का कैलेंडर , 
अब फड़फड़ा रहा है।  

जल्दी है उसको जगह खाली करने की , 
नए कलेवर में २०१८ आ रहा है।  

वक्त के आगे वो भी मजबूर है , 
यादो की पोटली बाँधे , अब उतर रहा है।  

उस कील को धन्यवाद कहिये , 
जो संभाले रखी थी इसको , 
अब उसी पर नए साल का , 
ये कैलेंडर चढ़ना है।  

आगे , बढिये - हर रोज़ ये कैलेंडर कहता है , 
खुद से काटकर एक नया दिन हमें देता है , 
यही नियति है शायद , 
वक्त यहाँ सबका बदलता है।  

Saturday, December 16, 2017

बहुत याद आते है

बहुत याद आते है , 
कुछ लोग , 
जो चले जाते है , 
जीवन में , 
अक्सर वो , 
हमारी , 
ऐसी छाप , 
छोड़ जाते है।  

यूँ तो ज़िन्दगी का , 
कारवाँ फिर भी , 
चलता रहता है , 
अपनी गति से , 
मगर वो , 
जब भी याद , 
आते है , 
बहुत याद आते है।  

दिल के , 
किसी कोने , 
शायद , 
वो हमारे , 
बस जाते है , 
जब कभी जिक्र हो , 
आँसू बनकर , 
आँखों से छलक , 
जाते है।  


कुछ लोग , 
जो बिछड़ जाते है , 
कभी कभी , 
बहुत याद आते है, 
दिल के किसी , 
कोने में , 
बैठे , 
जब याद आते है , 
आँखों से पानी बन , 
रुला जाते है, 
बहुत याद आते है।    


( अपने पिताजी को समर्पित )

Thursday, December 14, 2017

शब्द आमंत्रण



आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

सच लिखने का 'साहस' बनो ,
'हताशा ' के 'बादलों ' को छिन्न-भिन्न करो ,
'प्यार बनो' , 'अभिमान' बनो,
'गौरव' तुम , 'संस्कार' बनो।

आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

दुःखियों की 'पुकार' बनो,
जुल्मो की 'काट' बनो ,
सौहार्द का 'रस'  घोलो ,
नफरत का 'नाश' बनो।

आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

कुछ इस तरह से आज 'सजो' ,
आशा का 'नव संचार' करो ,
दुःख हरो , मद हरो ,
नव 'उल्लास' का रंग भरो।

आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

गीत बनो , कहानी रचो
श्रंगार लिखो , वेदना की पीड़ा में ढलो,
ख़ुशी या गम के फ़साने में बसो।
किसी भी रूप में आज ढलो। 

आओ शब्दो ,
आपको आमंत्रण देता हूँ।

दोस्ती के नए आयाम गड़ो ,
प्यार के अर्थ को अंजाम दो ,
बड़ो का आशीर्वाद लिखो ,
छोटो को स्नेह से निहाल करो।


आओ शब्दो , आपको आमंत्रण देता हूँ ,
हाथ जोड़कर , विनती करता हूँ ,
आज किसी कलमकार को आशीष  दो ,
उसकी रचना में स्थान ग्रहण कर उसे 'अमर' कर दो।     

Thursday, December 7, 2017

ऑनलाइन दुनिया और हम



वास्तविक दुनिया से अलग एक ,
ऑनलाइन दुनिया है। 
एक क्लिक पर जहाँ सब कुछ ,
हासिल है। 

जुड़ गया है पूरब से पश्चिम ,
उत्तर से दक्षिण ,
कुछ तरंगो का गजब मायाजाल है ,
ऑनलाइन दुनिया वाकई कमाल है। 

पुराने बिछड़े दोस्त खोज लो ,
नए बनने के लिए तैयार है ,
अपनी कलाकारी और हुनर दिखाने के लिए ,
ये मंच कमाल है। 

ज्ञान - विज्ञान बस एक क्लिक दूर है ,
धर्म - अध्यात्म का यहाँ सम्पूर्ण ज्ञान हैं ,
कामकाजी अपने काम की चीज ढूंढते ,
फुरसतिये के लिए पूरा टाइम पास है। 

वास्तविक दुनिया में भले ही शान्ति हो ,
ऑनलाइन दुनिया में हाहाकार हैं ,
लाइक और शेयर करने का ,
हर खबर को लाइसेंस प्राप्त है। 

छूट न जाये कोई इस दुनिया से ,
व्यापार का ये नया बाजार है ,
आपकी उँगलियों पर ,
ये सारा ऑनलाइन संसार है। 

वैधानिक चेतावनी है ,
डिजिटल इस संसार में सतर्क रहना ,
छद्मभेषी भी बहुत  घूम रहे है ,
अँगुलियों पर थोड़ा लगाम भी रखना।  

Monday, December 4, 2017

बुजुर्ग

ये जो घर के बड़े - बूढ़े है , 
ये भी पहले हमारे जैसे ही थे , 
इन्होने भी बचपन देखा , 
और फिर जवानी का दौर , 

ऐसा नहीं हैं ये कुछ जानते नहीं है , 
ये वो सब जानते है , 
शायद इसीलिये बोलते है , 
जो हमारी किताबो में कभी लिखा ही नहीं।  

ज़िन्दगी का तजुर्बा लिए बैठे है , 
बरगद का पेड़ है , 
जो हर मौसम और समय को ,
सलीके से जी आये है, 
हमारी तरह थोड़ी परेशानी में , 
कराहते नहीं।  

अब इन्हे कुछ नहीं चाहिए , 
चाहिए तो थोड़ा इज्जत और सम्मान , 
बदले में ये आपको दे सकते है , 
वो तजुर्बा जो शायद कही लिखा ही नहीं।  

आज हम जो भी है , 
इनके आशीष के बगैर कुछ भी नहीं , 
जीवन का उत्तरार्ध है , 
एक दिन हमें भी होना हैं यहीं।