Sunday, January 14, 2018

पुरानी डायरी

कुछ ढूंढते ढूंढते , 
मिली मुझे मेरी वह पुरानी डायरी , 
जिसे मैं शायद कब का भूल गया था , 
उसका कवर भी अब जैसे दम तोड गया था , 

हाथो से उस पर लगी धूल  झाड़ी , 
पहले पन्ना खोला , 
तो जैसे मुस्करा रहा था , 
कितने सालो के बाद साक्षात्कार , 
हो रहा था ,
पूछ रही थी शायद , 
कहाँ  थे " इतने साल " ? 

उस डायरी का मेरी ज़िन्दगी से बड़ा लगाव था , 
उसके हर पन्ने पर मेरा एक ख्वाब था , 
मेरी अल्हड़पन की ख्वाईशो का , 
वो पुलिंदा था , 
मेरी हसरतो का जैसे वो , 
पूरा चिटठा था।  

मेरी दोस्तों के हस्ताक्षरो से , 
किसी पन्ने पर वो डायरी सजी थी , 
मेरी अधपकी कविताओं के  , 
बोझ से वह मर रही थी।  

कुछ लैंडलाइन नंबर अब भी , 
उसमे चमक रहे थे , 
कुछ लोगो के पते , 
अब भी उसमे लिखे थे।  

कुछ पन्नो पर " गणित के सूत्र " ,
अब भी लिखे थे , 
कई पन्ने " हिंदी गानो " से , 
भरे थे।  

कुछ चिट्ठिया 'अन्तर्देशी पत्र ' की शक्ल में , 
पन्नो के बीच में दबी पड़ी थी , 
अंतिम पन्ने -मेरी पेंसिल से , 
बने चित्रों से अटे पड़े थे।  

किसी पन्ने में ख़ुशी के पल थे , 
किसी पन्ने में स्याह रंग थे , 
कोई पन्ना तो अब भी कोरा था , 
किसी पन्ने पर महान " प्रेरणादायी" विचार चमक रहे थे।    

एक पल जैसे सारा बीता बचपन जी गया , 
उन सुनहरी यादो में खो गया , 
जहाँ से चलकर अब मैं खड़ा था , 
उस डायरी के एक एक पन्ने पर अद्धभुत जीवन था।    

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